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थोक महंगाई का आधार वर्ष बदलने की तैयारी

नई दिल्ली। सरकार ने एक बार फिर थोक मूल्यों पर आधारित महंगाई की दर (डब्ल्यूूपीआइ) का आधार वर्ष बदलने की तैयारी शुरू कर दी है। सरकार अब थोक मूल्यों पर आधारित महंगाई की दर के आकलन के लिए 2017-18 को आधार वर्ष बनाने जा रही है। सरकार का मानना है कि इससे मुद्रास्फीति की अधिक वास्तविक तस्वीर सामने आएगी। बताया जा रहा है कि वाणिज्य व उद्योग मंत्रालय ने इस पर...

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थोक महंगाई के मोर्चे पर सितंबर में राहत, कम रहे खाद्य पदार्थों के दाम

नई दिल्ली। सितंबर महीने में थोक मंहगाई के मोर्चे पर राहत देखने को मिली है। इस महीने थोक महंगाई दर 3.24 फीसद से घटकर 2.6 फीसद हो गई है। हालांकि मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर की महंगाई दर में बढ़त देखने को मिली है। यह सितंबर में 2.72 फीसद रही है, जोकि अगस्त महीने के दौरान 2.45 फीसद रही थी। वहीं, प्राइमरी आर्टिकल से जुड़ी महंगाई दर 2.66 फीसद से घटकर 0.15 फीसद हो गई...

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थोक महंगाई : जनता को मिली राहत, दर 2.17 फीसद घटी

नई दिल्ली। रिटेल महंगाई के बाद थोक महंगाई के मोर्चे पर भी राहत की खबर आई है। साल 2017 के मई महीने के दौरान थोक महंगाई (डब्ल्यूपीआई) दर घटकर 2.17 फीसद रही है, जबकि बीते महीने (अप्रैल) महंगाई दर 3.85 फीसद रही थी। गौरतलब है कि केंद्र सरकार ने थोक महंगाई दर का आधार वर्ष बदलकर 2011-12 कर दिया है, इससे पहले 2004-05 को ही आधार मानकर आंकड़े जारी किए...

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थोक महंगाई बढ़कर 3.39 प्रतिशत, खाद्य कीमतें हुई कम

थोक मुद्रास्फीति में तीन महीने का गिरने का सिलसिला दिसंबर 2016 में टूट गया और यह बढ़कर 3.39 प्रतिशत हो गई। इसमें बढ़ोतरी की खास वजह विनिर्माण सामानों के दाम बढ़ना है जबकि खाद्यों की कीमत कम हुई। थोक मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति नवंबर के 3.15 प्रतिशत के मुकाबले बढ़कर 3.39 प्रतिशत रही है। दिसंबर 2015 में यह शून्य से 1.06 प्रतिशत नीचे थी। दिसंबर में सब्जियों के थोक दाम...

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जीडीपी बनाम भूख सूचकांक-- धर्मेन्द्रपाल सिंह

ताजा विश्व भूख सूचकांक या ग्लोबल हंगर इंडेक्स (जीएचआइ) के अनुसार भारत की स्थिति अपने पड़ोसी मुल्क नेपाल, बांग्लादेश, श्रीलंका और चीन से बदतर है। यह सूचकांक हर साल अंतरराष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान (आइएफपीआरआइ) जारी करता है, जिससे दुनिया के विभिन्न देशों में भूख और कुपोषण की स्थिति का अंदाजा लगता है। आज केवल इक्कीस देशों में हालात हमसे बुरे हैं। विकासशील देशों की बात जाने दें, हमारे देश...

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