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मोदी सरकार और रिजर्व बैंक 2008 के संकट में की गई भूलों से सबक ले सकते हैं, मगर समय हाथ से निकल रहा है

-द प्रिंट, लॉकडाउन में पांचवां महीना बीत रहा है मगर कोविड-19 की महामारी खत्म होने का नाम नहीं ले रही है और अर्थव्यवस्था निरंतर नीचे फिसलती जा रही है. आधुनिक भारत ने ऐसी महामारी पहले नहीं झेली थी, लेकिन इसका आर्थिक प्रभाव जाना-पहचाना है— सुस्त आर्थिक वृद्धि, ऊंची मुद्रास्फीति, और बेहिसाब बुरे कर्जों का घातक मेल. 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट (जीएफसी) के बाद के दौर में भी यही स्थिति थी....

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जागते रहो

-इंडिया टूडे, घनघोर मंदी के बीच शेयर बाजार की छलांग देखने के बाद एक नवोदित ब्रोकर ने शेयरों-शेयरों का पानी पिए अपने तपे तपाए उस्ताद के केबिन में जाकर खिलखिलाते हुए कहा, ‘‘सर, मजा आ गया, आज तो निफ्टी रॉकेट हुआ जा रहा है.’’ उम्रदराज ब्रोकर ने कंप्यूटर से निगाहें हटाकर कहा, ‘‘लकी फूल’ हो तुम.’’ यानी किस्मती मूर्ख, जो मौके के सहारे मीर (फूल्ड बाई रैंडमनेस) बन जाते हैं और...

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कैसे कोरोना वायरस ने यूरोपीय देशों को भी राष्ट्रवाद का झंडा पकड़ा दिया है

-सत्याग्रह, यूरोपीय संघ का विशेष कोरोना शिखर सम्मेलन इसके ब्रसेल्स स्थित मुख्यालय में शुक्रवार 17 जुलाई को शुरू हुआ था. अगले ही दिन उसे समाप्त हो जाना था. पर चला दो के बदले पांच दिन. पूरे 90 घंटे. संघ के 27 सदस्य देशों के राष्ट्रपतियों-प्रधानमंत्रियों के बीच राष्ट्रीय स्वार्थों का टकराव ऐसा था कि तीन दिनों तक गतिरोध बना रहा. यहां तक कि उनके बीच अच्छी-ख़ासी गर्मा-गर्मी भी रही. कई बार लगा...

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आज भी जिंदा है Mother India के सुक्खी लाला, किसान ने बेटे के इलाज के लिए लिया कर्जा, हड़प ली पूरी जमीन

-गांव कनेक्शन, " हमारा जवान लड़का अस्पताल में भर्ती था। जेवर बेचकर और उधार लेकर डेढ़ लाख रुपए लगा चुके थे। इलाज के लिए और पैसे की ज़रुरत थी तो एक एकड़ खेत 26 हजार में गिरवी रख दिया। लेकिन बनिया (साहूकार) ने बेईमानी की और हमारी पूरी धरती (4 एकड़ ज़मीन) हड़प ली। बेटा और ज़मीन दोनों चले गए," कहते-कहते बुजुर्ग मथुराबाई पल्लू में मुंह छिपाकर फफक फफक कर रोने...

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“महामारी को सरकार ने महात्रासदी में बदला”

-आउटलुक, पहले चंद्रशेखर सरकार और फिर अटलबिहारी वाजपेयी सरकार में वित्त मंत्री और फिर विदेश मंत्री जैसा अहम जिम्मा संभाल चुके 83 वर्षीय यशवंत सिन्हा 2014 के बाद से ही दलगत राजनीति से बाहर हैं लेकिन बतौर सार्वजनिक शख्सियत वे आज भी सक्रिय हैं। हाल में लॉकडाउन के दौरान गरीब और प्रवासी मजदूरों की दुर्दशा के खिलाफ उन्होंने राजघाट पर लगभग 11 घंटे का धरना और गिरफ्तारी दी। उनकी मांग है कि मजदूरों...

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