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यूपी: 43 जिलों में लगने हैं 204 पोषाहार यून‍िट, एक साल में लग पाए सिर्फ 2

-इंडियास्पेंड, आंगनबाड़ी के बच्‍चों को अच्‍छा पोषाहार उपलब्‍ध कराने के लिए उत्‍तर प्रदेश सरकार पोषाहार यून‍िट लगवा रही है। योजना के तहत यूपी के 43 जिलों में 204 यून‍िट लगनी हैं, जिसकी जिम्‍मेदारी 'यूपी राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन' को दी गई है। योजना शुरू होने के एक साल बीतने के बाद इन 204 यून‍िट में से सिर्फ दो यूनिट लग पाई हैं। यह दो यूनिट भी संयुक्त राष्ट्र के यूएन वर्ल्‍ड फूड...

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पूंजीवाद के दौर में क्यों ज़रूरी है किसान-मज़दूरों का गठबंधन

-न्यूजक्लिक, मार्क्सवादी सिद्धांत, बदलते वक्त के साथ विकसित होता है, जैसे कि खुद पूंजीवाद विकसित होता है। इसीलिए तो मार्क्सवाद अब भी एक जीवंत सिद्धांत बना हुआ है। पूंजीवाद का अतिक्रमण संभव बनाने वाली क्रांतिकारी प्रक्रिया में किसानों की भूमिका के प्रश्न पर, मार्क्सवादी सिद्धांत में उल्लेखनीय विकास हुए हैं। मैं यहां इन्हीं पर चर्चा करने जा रहा हूं। हालांकि फ्रेडरिक एंगेल्स ‘द पीजेंट वार इन जर्मनी’ में पहले ही इस...

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जलवायु परिवर्तन: भारत कोयले के बिना क्यों नहीं रह सकता है?

-बीबीसी, भारत दुनिया का ऐसा तीसरा सबसे बड़ा देश है जो बड़े पैमाने पर जीवाश्म ईंधनों को निकालता है और उसमें भी वो सबसे अधिक कोयला निकालता है. दुनिया के बड़े देश मांग कर रहे हैं कि कोयले का खनन कम किया जाना चाहिए. यह भारत जैसे तेज़ी से विकास कर रहे देश के लिए कितना मुश्किल है कि वो अपने सबसे महत्वपूर्ण ऊर्जा स्रोत को खो दे? भारत में जलवायु परिवर्तन से...

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ओडिशा माली पर्वत खनन: हिंडाल्को कंपनी का विरोध करने वाले आदिवासी एक्टिविस्टों को मिल रहीं धमकियां

-न्यूजक्लिक, ओडिशा के आदिवासी और दलित किसान पिछले दो दशकों से उनके पवित्र स्थल माली पर्वत पर बॉक्साइट खनन का विरोध कर रहे हैं। 270 एकड़ में फैला माली पर्वत दक्षिण ओडिशा के कोरापुट जिले में पड़ता है। साल 2007 में हिंडाल्को इंडस्ट्रीज़ के खनन लाइसेंस की अवधि ख़त्म हो गई थी। इसके बाद आदिवासियों के कड़े विरोध के चलते आगे खनन रोक दिया गया था। अप्रैल में कंपनी के खनन...

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कहां हुई चूक: हिमाचल में वृक्षारोपण से न जंगलों में हुआ इजाफा, न लोगों को मिला फायदा

-डाउन टू अर्थ, हिमाचल प्रदेश में जंगलों को बढ़ाने के लिए दशकों से चलाए जा रहे वृक्षारोपण कार्यक्रमों से न तो वहां के जंगलों में कोई खास इजाफा हुआ है, न ही इनका फायदा वहां रहने वाले आम लोगों तक पहुंचा है। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यह है कि आखिर इन महंगे वृक्षारोपण में कहां चूक रह गई है। इस पर 13 सितम्बर 2021 को अंतराष्ट्रीय जर्नल नेचर सस्टेनेबिलिटी में...

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