यूरोप की अर्थव्यवस्था दूसरे विश्वयुद्व के बाद पूरी तरह लड़खड़ा गई थी और उस समय उद्योग को मूलमंत्र मानकर विकास की रूपरेखा तैयार की गई। इसी समय विकास की दिशा में दो बड़े परिवर्तन हुए। पहला विकास की परिभाषा गढ़ी गई, जिसका मतलब सीधा-सा यह था कि उद्योग और उससे जुड़े तमाम आगे-पीछे के आयामों को ही विकास मान लिया जाए। दूसरा इसी के बाद भोगवादी सभ्यता का तेजी से...
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हम जाति का ज़हर फिर क्यों पिएं?- वेद प्रताप वैदिक
मुझे आश्चर्य है कि भाजपा सरकार के मंत्रिमंडल ने ऐसा राष्ट्र-विरोधी निर्णय कैसे कर लिया? जातीय जनगणना को कांग्रेस सरकार ने अधबीच में बंद कर दिया था, लेकिन इस गणना के जो भी अधकचरे आंकड़े इकट्ठे हुए हैं, सरकार उन्हें प्रकट करने के लिए तैयार हो गई है। वह इन्हें अगले साल तक प्रकाशित करेगी। तब तक राज्य-सरकारों की रपट भी उसके पास आ जाएगी और जो आंकड़े उसके पास...
More »जाति के आंकड़ों से डरने वाले- योगेन्द्र यादव
जाति का भूत देखते ही अच्छे-अच्छों की मति मारी जाती है। या तो लोग बिल्ली के सामने आंख मूंदे कबूतर की तरह हो जाते हैं, और यह खुशफहमी पालने लगते हैं कि जाति है ही नहीं। या फिर उनकी गति सावन के अंधे की तरह हो जाती है, और उन्हें हर बात में जाति ही जाति नजर आने लगती है। सरकार द्वारा सामाजिक-आर्थिक-जाति जनगणना के जाति संबंधी आंकड़े सार्वजनिक न करने...
More »जाति के आंकड़ों से कौन डरता है?- योगेन्द्र यादव
जाति का भूत देखते ही अच्छे-अच्छों की मति मारी जाती है. या तो लोग बिल्ली के सामने आंख मूंदे खड़े कबूतर की तरह हो जाते है, कड़वी सच्चाई का सामना करने के बजाय यह खुशफहमी पालने लगते हैं कि जाति है ही नहीं. या फिर उनकी गति सावन के अंधे की तरह हो जाती है. सावन के अंधे को हरा ही हरा सूझता है और इसी तर्ज पर कुछ लोगों...
More »मजहबी तालीम से आगे बढ़ें मदरसे - तुफैल अहमद
पिछले दशकों के आंकड़े गवाह हैं कि मदरसों में पढ़ने वाले भारतीय मुसलमान भौतिकशास्त्री, अर्थशास्त्री, चार्टर्ड एकाउंटेंट, सॉफ्टवेयर इंजीनियर, डॉक्टर और यहां तक कि राजनीतिज्ञ भी नहीं बन पाते। मदरसे मुस्लिमों को सार्वजनिक जीवन से बाहर रखने के कारक बन जाते हैं। हां, कुछ मदरसों के छात्र आधुनिक पेशे में प्रवेश पा लेते हैं, लेकिन इसमें मदरसों की भूमिका नहीं है, बल्कि यह उनका व्यक्तिगत सद्प्रयास है। इस बात के भी...
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