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मौसम की अटकलों से बढ़ती दुविधा - प्रमोद भार्गव

बरसात से पूर्व मौसम विभाग द्वारा मानसून की भविष्यवाणियों में फेरबदल चिंता का सबब बन रहा है। मई की शुरुआत में सामान्य से पांच फीसद कम बारिश की भविष्यवाणी की गई थी, लेकिन 9 जून को औसत से सात प्रतिशत कम वर्षा का अंदेशा जताया गया। यानी आज भी हमारा मौसम विभाग सटीक भविष्यवाणी करने की स्थिति में नहीं है। इस पर चिंतित होना इसलिए लाजिमी है, क्योंकि पिछले कुछ...

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सस्ती जमीन, पर बेशकीमती रोजगार- एम एन बुच

इन आम चुनावों में गुजरात सरकार पर बार-बार आरोप लगाया जा रहा है कि उसने पूंजीपतियों को कौड़ियों के मोल जमीन बांट दी है। इसमें व्यक्ति विशेष का उल्लेख किया जा रहा है, परंतु यह नहीं बताया जा रहा कि राज्य सरकार की नीति ही है कि उद्योगों को प्रोत्साहन देने के लिए औद्योगिक इकाइयों को इसी दर पर जमीन दी जाए। यदि आवंटन में और आवंटन शुल्क में पक्षपात...

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ज़मीन आदिवासियों की, क़ब्ज़ा किसी और का!- आलोक प्रकाश पुतुल

छत्तीसगढ़ के रायगढ़ के मीलूपारा की जानकी के लिए अपनी ज़मीन से पूरे 14 साल दूर रहना किसी वनवास से कम नहीं था. 14 साल तक तहसीलदार से लेकर हाईकोर्ट तक चली लड़ाई के बाद अब कहीं जा कर उनकी चार एकड़ ज़मीन वापस करने की प्रक्रिया शुरू की गई है. हल्का पटवारी द्वारा अदालत में प्रस्तुत अपने 5 जनवरी 2012 के जांच रिपोर्ट में बताया गया कि जानकी बाई की ज़मीन...

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अलनीनो, मॉनसून और अर्थव्यवस्था- अविनाश कुमार चंचल

दुनियाभर के पर्यावरण विशेषज्ञ 2014 को अलनीनो का साल मान रहे हैं. अगर सच में यह साल अलनीनो के प्रभावों वाला होगा, तो यह भारत सहित समूचे दक्षिण एशियाई क्षेत्र के लिए चिंताजनक स्थिति बन सकती है. भारतीय मौसम विभाग ने भी इस साल मॉनसून में कमी का अनुमान जताया है. अलनीनो, मॉनसून और अर्थव्यवस्था पर इसके प्रभाव पर नजर डाल रहा है आज का नॉलेज. पर्यावरण के गंभीर खतरों के बीच...

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नये मध्यवर्ग का चरित्र- पवन के वर्मा

भारत का युवा गणतंत्र संकट में है, और भारतीय मध्य-वर्ग इसमें मुखर प्रतिभागी और हाशिये पर खड़ा दर्शक बना हुआ है. इस द्वैध के कई कारण हैं. इतिहास में किसी वर्ग के लिए यह असामान्य नहीं रहा है कि वह अपने अंदर कहीं बड़ी संभावना रखता हो, लेकिन आम तौर पर उससे बेखबर हो तथा उस बड़ी भूमिका को निभाने के लिए उसकी उतनी तैयारी भी न हो. सामाजिक रूपांतरण की...

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