ओड़िशा एक बार फिर शर्मसार है। दाना मांझी प्रकरण की कालिख से बदरंग हुआ चेहरा भी राज्य सरकार को सबक नहीं दे सका। बीते अठारह अक्तूबर को राउरकेला जिला अस्पताल में लहुणीपाड़ा निवासी बबलू भूमिज अपनी ढाई साल की बच्ची का शव घर ले जाने के लिए एक अदद एंबुलेंस की खातिर डॉक्टरों की मनुहार करते रहे, लेकिन चौबीस घंटे तक भरसक प्रयास करने के बावजूद वह अंतत: नाकाम रहे।...
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राजद्रोह का चना जोरगरम-- चंदन श्रीवास्तव
फिल्म प्यासा का गीत है- ‘सर जो तेरा चकराये या दिल डूबा जाये', एक जगह तनिक छेड़ के साथ पात्र कहता है कि ‘लाख दुखों की एक दवा है क्यों ना आजमाये.' ऐसी दवा साहित्य के पन्नों में मिला करती है, लेकिन लगता है अब राजनीति ने भी यह दवा खोज निकाली है. सार्वजनिक महत्व के मसले पर राजनीतिक असहमति से उपजनेवाले तमाम दुख-दर्दों से छुटकारे की इस दवा का...
More »कैसे रुकेंगे ऐसे हादसे--- अमरनाथ सिंह
वाराणसी में बाबा जय गुरुदेव के अनुयायियों के एक कार्यक्रम में अचानक हुई भगदड़ ने एक बार फिर यह साबित किया है कि आज भी अपने देश में कारगर भीड़ प्रबंधन की कमी है। बात केवल वाराणसी की इस घटना की नहीं है। हर साल भीड़ के बेकाबू होने से हादसे होते हैं। हालांकि भगदड़ की घटनाएं केवल भारत में नहीं, विदेशों में भी होती हैं। लेकिन जहां विदेशों में...
More »मौन जुलूसों के नीचे धधकती आग-- प्रमोद मीणा
किसी के कंधे पर बंदूक रख कर निशाना लगाना क्या होता है, इसकी जीवंत बानगी मराठा आंदोलन है। लाखों की संख्या में मराठा महाराष्ट्र की सड़कों पर मौन जलूस निकाल रहे हैं। इसका तात्कालिक कारण बताया जा रहा है अहमदनगर जिले में एक चौदह वर्षीय मराठा लड़की का बलात्कार और हत्या। इस मामले में अभी तक पकड़े गए तीनों आरोपी दलित हैं। कू्ररता की शिकार इस बालिका को न्याय दिलाने...
More »कफन, चिता और सत्याग्रह!-- नासीरुद्दीन
रिचर्ड एटनबरॉ की फिल्म ‘गांधी' में रोंगटे खड़े कर देनेवाले दो-तीन सीन हैं. पहला, दक्षिण अफ्रीका में गांधी जी की अपील पर सत्याग्रह का पहला प्रयोग हो रहा है. अंगरेज फौजी उन्हें बेदर्दी से मारते हैं. घोड़े दौड़ाते हैं. फिर भी वे सत्याग्रह से डिगते नहीं हैं. दूसरा, जालियांवाला बाग में सभा हो रही है. हजारों लोग जमा हैं. अंगरेज फौज आती है. गोलियां चलायी जाती हैं. लोग बचने...
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