हमारे देश में कई जगहों पर आज भी बेटियों को उपेक्षित जिंदगी जीनी पड़ती है. कहीं उन्हें जन्म लेने से पहले गर्भ में ही मार डाला जाता है, तो कहीं जन्म लेते ही भगवान भरोसे लावारिस छोड़ दिया जाता है. लेकिन तमिलनाडु सरकार की एक योजना के तहत उपेक्षित कन्या शिशुओं को एक बेहतर जिंदगी मयस्सर करायी जा रही है. राजीव चौबे तमिल नाडु के नामक्कल जिले में स्थित अन्नाई मथाम्मल शीला...
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विकास के कई मानकों में दुनिया से बहुत पीछे हैं हम
नितिन प्रधान, नई दिल्ली। आर्थिक विकास की ऊंची दर को लेकर भले ही हमारी उम्मीदें बहुत अधिक हों, लेकिन सामाजिक-आर्थिक विकास के मानकों में आज भी भारत की स्थिति बेहद खराब है। खासतौर पर पुरुषों के मुकाबले कामकाजी महिलाओं के अनुपात के मामले में हम दुनिया के कई छोटे देशों से भी पीछे हैं। लोगों को उपलब्ध स्वास्थ्य सुविधाओं के मामले में तो भारत की स्थिति बेहद दयनीय है। वर्ल्ड इकोनॉमिक...
More »पहले मन साफ कीजिए, फिर सड़क- हर्षमंदर
इन दिनों देश में साफ-सफाई को लेकर एक बड़े सामाजिक आंदोलन की गहरी कसक दिखाई पड़ रही है। गांधी के नाम को याद किया जाने लगा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आगे बढ़कर स्वच्छता अभियान की अगुवाई की। उनके मंत्रियों और अधिकारियों ने कैमरों के आगे झाड़ू पकड़े। कॉलेज और स्कूलों के बच्चों ने गंदगी के खिलाफ और अपने आस-पड़ोस को साफ-सुथरा रखने की शपथ ली। इसके पहले प्रधानमंत्री ने...
More »घर में भी नहीं, तो कहां सुरक्षित हैं बेटियां - सभाषिनी सहगल अली
बदायूं का नाम वर्षों तक एक भयानक तस्वीर के साथ जुड़ा रहेगा-एक पेड़ की डाल पर टंगी दो लड़कियों की लाश। पिछड़े वर्ग की दो चचेरी बहनों के साथ हुए बलात्कार और हत्या के आरोपी ही नहीं, लड़कियों के घरवाले की मदद से इन्कार करने वाले पुलिसकर्मी भी उसी जाति के थे, जिस जाति के प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं। क्या इसलिए उन्हें किसी का डर नहीं था? काफी हंगामे के बाद...
More »5-20 वर्ष की आयु की लड़कियां सबसे अधिक गुमशुदा
पंद्रह से बीस वर्ष की आयु की लड़कियां सबसे अधिक गुमशुदा होती हैं। यह तथ्य 181 हेल्पलाइन पर आईं फोन कॉल के विश्लेषण से सामने आया है। आंकड़ों के मुताबिक कुल गुमशुदा लड़कियों में इस आयु वर्ग की लड़कियों की संख्या 42 फीसदी है। दिल्ली सरकार की महिला हेल्पलाइन 181 पर 31 दिसंबर 2012 से 23 सितंबर 2014 तक आईं सभी कॉल का विश्लेषण किया है। इस अवधि में 2,043 कॉल...
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