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ग्रामीणों के लिए दोहरी मार साबित होगी कोरोना महामारी

-डाउन टू अर्थ, कोरोनावायरस (कोविड-19) बीमारी की वजह से हमारे समाज की असमानता सामने नहीं आई है। मुक्त बाजार काल में इसे अस्तित्व के खतरे के तौर पर पहले ही स्वीकार किया जा चुका है। कोरोनावायरस की वजह से यह जरूर स्पष्ट हुआ है कि आर्थिक रूप से हाशिए पर खड़े लोगों को स्वास्थ्य आपातकाल का सामना कैसे करना पड़ेगा। उदाहरण के लिए, अगर हम अमेरिका की बात करें तो कई...

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इनसे एक बार का लिया कर्ज़ पुश्तें चुकाती हैं

आप सभी से एक सवाल है, अगर आपने कभी किसी से 5,000-10,000 रुपए का कर्ज लिया है तो उसे चुकाने में आपको कितना वक़्त लगता है? इस सवाल का जबाब आपकी आमदनी के अनुसार अलग-अलग हो सकता है। लेकिन बिहार के गया जिले के फेंकू के लिए इस कर्ज का दर्द 30 साल का है। फेंकू माझी (46 वर्ष) को ठीक से याद नहीं है कि उनके परिवार ने ठेकेदार से 30...

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पश्चिम बंगाल के मदरसों में हिंदू छात्र बढ़े, ये है वजह

मदरसों का नाम लेते ही आंखों के सामने आमतौर पर एक ऐसे स्कूल की तस्वीर उभरती है जहां अल्पसंख्यक समुदाय के छात्र पारंपरिक तरीके से तालीम हासिल करते हैं. लेकिन पश्चिम बंगाल के मदरसों में यह तस्वीर बदल रही है. राज्य के मदरसों में न सिर्फ ग़ैर-मुसलमान छात्र पढ़ते हैं, बल्कि उनकी तादाद भी लगातार बढ़ रही है. राज्य में सोमवार से शुरू मदरसा बोर्ड की परीक्षा ने इस बार एक...

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भाषा, विरासत और जीवन बचाने की जद्दोजहद में दिल्ली के गड़िया लोहार

-कारवां  2012 में किरण सिंह सांखला छोटी थीं और सरकारी अधिकारियों ने उनके परिवार को पश्चिमी दिल्ली के अस्थाई घर से बेदखल कर दिया. उनके परिवार को पहले भी कई दफा अस्थाई आवास से बेदखल किया जा चुका था लेकिन यह बेदखली खास तौर पर सांखला के लिए बहुत दुश्कर थी. वह उस वक्त दसवीं कक्षा की परीक्षा दे रही थीं. इस बेदखली में उनकी कुछ किताबें गुम हो गईं और कुछ...

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असीम सम्भावनाओं का पिटारा ‘घुमन्तू समाज’

अपने सम्पूर्ण जीवन को यायावरी और जुगलबन्दी से जीने वाला 10 फीसदी घुमन्तू समाज आज विडम्बना की स्थिति में हैं। जहाँ एक तरफ उसको अपनी मूल पहचान खोने की चिंता है तो दूसरी ओर आजीविका की मजबूरी ने उसे घेर रखा है। ऊपर से सरकारों के नित- नये नियम कानूनों ने उसका मजाक बना दिया है। घुमन्तू लोग कौन हैं ? यह लोग तो समाज को चलाने वाले ऊंचे दर्जे के लोग...

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