इलाहाबाद। छोटे लोहिया के नाम से विख्यात समाजवादी नेता जनेश्वर मिश्र का शुक्रवार को देहावसान हो गया। 77 वर्षीय मिश्र ने अपनी कर्मस्थली इलाहाबाद में अंतिम सांस ली। उनके निधन की खबर पर बेली रोड स्थित भतीजे के आवास पर सभी दलों के कार्यकर्ता श्रद्धांजलि देने के लिए उमड़ पड़े। शनिवार दोपहर संगम के पास उनकी उनकी अंत्येष्टि की जाएगी। उत्तार प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती और राज्यपाल बीएल जोशी ने मिश्र के निधन पर शोक जताया...
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जनेश्वर से छोटे लोहिया तक का सफर
इलाहाबाद । बलिया के बैरिया क्षेत्र के शुभनथहीं गांव में 5 अगस्त 1933 को जन्मे जनेश्वर मिश्र का राजनैतिक कैरियर इलाहाबाद में ही शुरू हुआ। वह इंटरमीडिएट की पढ़ाई कर वर्ष 1953 में यहां आए। किसान रंजीत मिश्र के दो पुत्रों में बड़े जनेश्वर शुरू से ही सोशलिस्ट विचारधारा से प्रभावित हो गए थे और फिर सोशलिस्टों के साथ ही रहें। चार दशक तक भारतीय राजनीति में सक्रिय भूमिका निभाने वाले जनेश्वर मिश्र ने देश...
More »उद्योगों के लिए कृषि भूमि पर जवाब दे सरकार
नई दिल्ली, राज्य ब्यूरो : राजधानी के उत्तार पश्चिमी क्षेत्र के कंझावला इलाके में कृषि भूमि को उद्योगों के लिए अधिगृहीत किए जाने पर हाईकोर्ट ने केंद्र और दिल्ली सरकार से जवाब तलब किया है। कंझावला के किसानों द्वारा दायर याचिका की सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस अजीत प्रकाश शाह और जस्टिस राजीव सहाय एंडलॉ की बेंच ने कहा कि ये बेहद महत्वपूर्ण सवाल है कि कृषि योग्य भूमि का प्रयोग गैर कृषि कार्यो के लिए...
More »तो कैसे हो किसानों की आय दोगुनी
लखनऊ। किसानों की आय दो गुनी करने की सरकार की घोषणा को लेकर खुद कृषि महकमे के ही अधिकारी सवाल उठाने लगे हैं। उत्तर प्रदेश राजपत्रित कृषि सेवा एसोसिएशन ने कहा है कि विभाग की रीढ़ समझे जाने वाले द्वितीय श्रेणी के राजपत्रित अधिकारियों का टोटा है। 703 स्वीकृत पदों में से महज 170 अधिकारी कार्यरत हैं और 533 पद रिक्त चल रहे हैं। फील्ड में हालात बहुत खराब हैं। अधिकारियों की इतनी बड़ी कमी...
More »गांव की मिट्टी ने किया परदेस से लौटने को मजबूर
बिक्रमगंज (रोहतास)। जज्बा हो तो पत्थर पर भी दूब उगाई जा सकती है। यानी संकल्प के साथ शुरू किया गया कठिन से कठिन काम आसान हो जाता है। इंद्राथ के किसानों को ही देखें। दशकों तक यहां परती पड़ी ऊसर जमीन आज लहलहा रही है। किसान इसपर नगदी फसल के रूप में सब्जी उगाकर खुशहाल हो रहे हैं। उनकी मेहनत ने गांव की सूरत ही बदल दी है। नतीजा शहरों में रोजगार को गए गये...
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