यदि आप आत्मविश्वास के साथ कह सकते हैं कि आधार से आपकी जिंदगी आसान हुई है, और ऐसी सरकारी सुविधाएं प्राप्त हुई हैं, जिनसे आप पहले वंचित थे, तो आप किसी ‘लुप्तप्राय प्रजाति' से कम नहीं, क्योंकि आज कल हर तरफ, आधार-त्रस्त लोग ही मिलेंगे। शायद आपको रोज फोन पर संदेश आ रहे होंगे-बैंक से और मोबाइल से आधार लिंक कीजिए। उससे पहले, आयकर भरते समय लोगों को काफी परेशानी...
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प्रदूषण की अर्थव्यवस्था के तर्क-- अनिल प्रकाश जोशी
एक बार फिर जर्मनी में पर्यावरण व जलवायु के मुद्दों पर अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन की शुरुआत हो चुकी है। और फिर से ऐसा कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा, जिससे यह कहा जा सके कि इस बार हम किसी बड़े निर्णय पर पहुंच पाएंगे। असली बाधा इसलिए है कि दुनिया को गरम होने से बचाने का मुद्दा दरअसल उद्योगों से जुड़ा हुआ है। अगर हम ‘ग्लोबल वार्मिंग' को रोकना चाहते हैं,...
More »आर्थिक सुधारों की कठिन राह पर-- एन के सिंह
आर्थिक फैसले पूरी स्फूर्ति से लिए जा रहे हैं। भले ही अभी हम नोटबंदी और जीएसटी की बहस में उलझे हुए हों, मगर हाल ही में सरकार ने अर्थव्यवस्था में नई जान फूंकने के लिए कई आर्थिक उपायों की घोषणा की है। ये कई लक्ष्यों को हासिल करने के इरादे सेप्रेरित हैं। एक कहावत है कि बुराई को मजबूती तब मिलती है, जब हम कोई फैसला नहीं कर पाते या दूसरों...
More »कानून नहीं जानता फेक न्यूज क्या है--- पवन दुग्गल
फर्जी खबरें यानी फेक न्यूज अब हर तरफ दिखने लगी हैं। फर्जी खबर वह सूचना है, जो तथ्यात्मक रूप से गलत होती है, पर उसका प्रसार इतनी कुशलता से किया जाता है कि वह बखूबी लक्षित समूह को गलत सूचना देने और उसकी धारणा व सोच को प्रभावित करने में सफल होती है। आज हम एक ऐसा देश हैं, जहां इंटरनेट का उपयोग करने वाली दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी...
More »अभिजीत मुखोपाध्याय-- अभिजीत मुखोपाध्याय
विमुद्रीकरण की घोषणा के ठीक एक साल बाद, यह पूरी तरह स्पष्ट है कि यह कदम विशुद्ध रूप से एक राजनीतिक हथकंडा था. जिसका मकसद प्रधानमंत्री को काला धन से लड़नेवाले एक ऐसे जेहादी अवतार के तौर पर पेश करना था, जो भ्रष्ट अमीरों की जान के पीछे पड़ा है. 8 नवंबर, 2016 को स्पष्ट उनके अपने शब्दों में- ‘इसलिए, भ्रष्टाचार, काला धन, नकली नोटों और आतंकवाद के विरुद्ध इस लड़ाई...
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