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अमीरों-नेताओं के चुनावी बॉन्ड की छपाई और बैंक कमीशन का ख़र्च करदाता उठा रहा: आरटीआई

-द वायर,   देश के विभिन्न वर्गों द्वारा चुनावी बॉन्ड पर सवाल उठाए जाने और सुप्रीम कोर्ट में इसकी वैधता को चुनौती देने वाली याचिका लंबित होने के बावजूद केंद्र की मोदी सरकार इसकी छपाई जारी रखे हुए है. आलम ये है कि अब तक में करीब 19,000 करोड़ रुपये के चुनावी बॉन्ड की छपाई हो चुकी है और कुल 13 चरणों में 6200 करोड़ रुपये से ज्यादा के चुनावी बॉन्ड की बिक्री...

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'राजस्थान मॉडल' से एमएसएमई में 90 लाख रोजगार देंगे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ

-इंडिया टूडे, उत्तर प्रदेश में सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग (एमएमएमई) के जरिए बड़े पैमाने पर रोजगार मुहैया कराने की योजना बन रही है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की योजना नई यूनिट खोलने की तो है ही, साथ ही यूनिटों में प्रवासी श्रमिकों समेत करीब 90 लाख लोगों को रोजगार दिलाने की है. इसमें वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोटक्ट ओडीओपी योजना भी शामिल है. मुख्यमंत्री ने निर्देश दिया है कि हर एमएसएमई में...

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मजदूरों का दर्द: 'किस भरोसे से गाँव वापस जाएं, दो महीने बाद खाली हाथ घर लौटने की हिम्मत नहीं बची है'

-गांव कनेक्शन, "किस भरोसे से गाँव वापस जाएं ? दो महीने बाद खाली हाथ घर लौटकर घर जाने की हिम्मत नहीं बची है। गाँव में कोई रोजगार नहीं है कि जाते ही काम मिल जाएगा। वहां करेंगे भी क्या जाकर ? यहां कम से कम ये तो उम्मीद है कि लॉकडाउन खुलने के बाद हो सकता है कुछ काम ही मिल जाए।" पुताई करने वाले राकेश कुमार (43 वर्ष) के इन शब्दों...

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गेहूं की सरकारी खरीद 252 लाख टन के पार, सबसे बड़े उत्पादक राज्य की हिस्सेदारी पांच फीसदी से भी कम

-आउटलुक, चालू रबी विपणन विपणन सीजन 2020-21 में गेहूं की न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर खरीद बढ़कर 252.50 लाख टन की हो गई है। जिसमें सबसे बड़े उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश की हिस्सेदारी मात्र 4.80 फीसदी ही है। भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) के अनुसार पंजाब, हरियाणा और मध्य प्रदेश से गेहूं की खरीद जोरों पर चल रही है लेकिन उत्तर प्रदेश के साथ ही राजस्थान से खरीद सीमित मात्रा में ही हो...

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महान दार्शनिक जिद्दू कृष्णमूर्ति राष्ट्रवाद और धर्म को मनुष्यता के लिए खतरा क्यों मानते थे?

-सत्याग्रह, अंग्रेजी के मशहूर साहित्यकार टीएस इलियट ने भारतीय दार्शनिकों के बारे में कहा था, ‘महान भारतीय दार्शनिकों के सामने पश्चिम के दार्शनिक किसी स्कूल के बच्चों की मानिंद नज़र आते हैं.’ यह बात अगर बीती सदी पर लागू करें तो जिद्दू कृष्णमूर्ति बिलकुल इसी कड़ी का हिस्सा लगते हैं. हां, यह अलग बात है कि वे ‘राष्ट्रीय पहचान’ को नकारते थे! कृष्णमूर्ति ने जिस तरह स्थापित परंपराओं को किनारे कर...

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