नई दिल्ली। सरकार की एक समिति ने जेनेटिकली मॉडिफाइड यानी जीएम सरसों की व्यावसायिक खेती को हरी झंडी दे दी है। लेकिन अभी इसका रास्ता साफ नहीं हुआ है। समाचार एजेंसी पीटीआइ के अनुसार, केंद्र सरकार की ओर से इसे अब तक मंजूरी नहीं दी गई है। वह ऐसी फसल के जैव सुरक्षा पहलुओं पर समिति की ओर से की गई सिफारिशों को लेकर जनता की राय लेगी। इसके बाद यह...
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मिट्टी ही मिट गई तो कहां खड़े होंगे हम - अनिल प्रकाश जोशी
मिट्टी से जुड़ी बहुत ही कहावतें हैं। इनमें एक है मिट्टी के मोल बिक जाने का मुहावरा, जो अब गलत साबित हो रहा है। अब जब मिट्टी तेजी से गायब हो रही है, तो हमें इसकी कीमत भी समझ में आ रही है। मिट्टी के खोने का सबसे बड़ा प्रमाण मानसून में मिलता है। वर्षा जल के पड़ते ही नदी, नाले, गाढ़-गदेरे जो अपना रंग बदल देते हैं, और हम...
More »भ्रष्टाचार और प्रदूषण का खनन-- रामचंद्र गुहा
जब नई सदी की शुरुआत हुई, तो मेरे गृह राज्य कर्नाटक में आर्थिक उदारीकरण के ‘पोस्टर बॉय' थे- एन आर नारायण मूर्ति। मध्यवर्गीय परिवार से निकले इस शख्स के पास उद्यमशीलता का कोई पारिवारिक अनुभव नहीं था। नारायण मूर्ति ने अपनी जैसी सोच वाले छह अन्य लोगों को जोड़ा और इन्फोसिस की नींव रखी। बहुत मामूली शुरुआत हुई थी इसकी, मगर साल 2000 तक इस कंपनी का मुख्यालय न सिर्फ बेंगलुरु...
More »लुप्त होती तटीय सुरक्षा पंक्ति--- रमेश कुमार दुबे
इस साल अच्छी मानसूनी बारिश से जहां किसानों के चेहरे खिल उठे हैं वहीं देश के कई हिस्से बाढ़ की चपेट में आ चुके हैं। इस बाढ़ की वजह अच्छी बारिश उतनी नहीं है जितनी कि विकास की अंधी दौड़ में पानी के कुदरती निकासी तंत्र को भुला दिया जाना। शहरों का विकास नदियों के बाढ़ क्षेत्रों, तालाबों व समीपवर्ती कृषि भूमि की कीमत पर हो रहा है। शहरों के...
More »फसल का नहीं खेती का बीमा हो!-- बिभाष
खेती की जब बात आती है, तो सभी आकाश की ओर ताकते हैं. अगर माॅनसून का समय और उसकी मात्रा उचित या पर्याप्त नहीं है, तो राजनीति की गति और दिशा दोनों बदल जाती है. बजट से लेकर बाजार तक सब आकाश ही निहारते हैं. कृषि में जोखिम प्रबंध बहुत ही कमजोर है. हरित क्रांति का चाहे जिस तरह से विश्लेषण या आलोचना करें, लेकिन उसने हमारी कृषि को तात्कालिक...
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