भोपाल, हरेकृष्ण दुबोलिया। साल भर पहले जिन पीडीएस की दुकानों से लोगों यह कर लौटा दिया जाता था कि राशन नहीं है बाद में आना,अब उन्हीं दुकानों में ना केवल भरपूर राशन है बल्कि हर महीने बच भी रहा है। सार्वजनिक वितरण प्रणाली में आधारबेस्ड सिस्टम लागू होने के बाद प्रदेश में एक साल में पीडीएस की कालाबाजारी पर काफी हद तक रोक लगी है। अब प्रदेश में हर महीने न...
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लोकतंत्र पर उठते सवाल-- अनुपम त्रिवेदी
देश में चुनावी माहौल है. कुछ प्रदेशों में चुनाव हो रहे हैं और कुछ में शीघ्र होनेवाले हैं. लगभग हर छह माह में कहीं न कहीं चुनाव होते हैं और इन्हें लोकतंत्र के पर्व की संज्ञा दी जाती है. भारत के सांस्कृतिक और धार्मिक कैलेंडर में यूं ही रोज कोई न कोई त्योहार होता है. उन त्योहारों में चुनाव रूपी यह सरकारी त्योहार भी जुड़ गये हैं. सभी यह त्योहार...
More »लोक-लुभावन राजनीति के नुकसान - डॉ अनिल प्रकाश जोशी
हमारे देश में पहले और आज की राजनीति में कितना फर्क आ गया है। पहले देश की राजनीति एक बड़ी हद तक मूल्यों पर चलती थी। राजनीतिक दल और मतदाता दोनों ही कहीं न कहीं नैतिकता व आदर्शों का पालन कर राजनीतिक गरिमा बनाए रखते थे। लेकिन आज स्थिति पूरी तरह बदल गई है। अब राजनीतिक दल चुनावों के समय जिस तरह मतदाताओं को लुभाने के लिए लोक-लुभावन घोषणाएं करते...
More »बजट में यूनिवर्सल बेसिक इनकम पेश कर गरीबों को साध सकती है मोदी सरकार
नयी दिल्ली : चुनावी मौसम में पेश होने वाली बजट के जरिये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार यूनिवर्सल बेसिक इनकम का तोहफा देकर देश के गरीबों को साधने का प्रयास कर सकती है. हालांकि, इसके पहले भी मोदी सरकार गरीबों को साधने कई लोकलुभावनी योजनाएं पेश कर चुकी है, लेकिन अन्य योजनाओं की तरह गरीबों के कल्याण के लिए सरकार की ओर से पेश की गयी योजनाएं भी समय के साथ...
More »राजतंत्र से जनतंत्र तक-- संदीप मानुधने
जब अंगरेज भारत छोड़ कर गये, उन्होंने वे सभी प्रयास प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से किये, जिससे उपमहाद्वीप में सदा के लिए दरारें पड़ी रहें. अंगरेजों की दिली तमन्ना थी कि भारत टुकड़े-टुकड़े हो जायेगा, क्योंकि इसे एक करनेवाला कोई है ही नहीं. लेकिन, उनके मंसूबों पर भारत के नेताओं ने पानी फेर दिया. सरदार पटेल ने पूरे देश को एक सूत्र में बांध दिया, पंडित नेहरू ने एक लोकतांत्रिक...
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