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यूनियन कार्बाइड से लेकर फेसबुक और ब्लूम्सबरी तक सभी बहुराष्ट्रीय कंपनियां भारत में अपनाती हैं दोहरा मानदंड

-कारवां, क्या भोपाल गैस त्रासदी के वक्त यूनियन कार्बाइड के तत्कालीन सीईओ वारेन एंडरसन, फेसबुक के सीईओ मार्क जुकरबर्ग और ब्लूम्सबरी के सीईओ नाइजिल न्यूटन के बीच कोई समानता है? उनमें एक समानता उनका यह विश्वास है कि उन्हें भारत में कारोबार करते हुए उन मानकों का पालन नहीं करना होगा जो वे पश्चिमी लोकतंत्र में कारोबार करते समय अपनाते हैं. इन लोगों को विश्वास है कि मुनाफे के लिए वे भूतपूर्व...

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कोरोनावायरस से निपटने के लिए देश में नई राष्ट्रीय योजना की जरुरत नहीं: सुप्रीम कोर्ट

-डाउन टू अर्थ, सुप्रीम कोर्ट ने 18 अगस्त, 2020 को दिए अपने आदेश में साफ कर दिया है कि देश में कोरोनावायरस से निपटने के लिए अलग से नई राष्ट्रीय नीति बनाने की जरुरत नहीं है। कोर्ट इस मामले में सरकार को नई राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन योजना बनाने और उसे लागु करने के लिए बाध्य नहीं कर सकता। कोर्ट ने कहा है कि आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के तहत पहले ही...

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भारत और चीन के विवाद का कारोबार पर कितना असर पड़ा?

-बीबीसी, भारत और चीन के बीच बिगड़ते रिश्ते इस बात की ओर इशारा कर रहे हैं कि पिछले कुछ सालों में भले ही दोनों देशों में गर्मजोशी दिखी, लेकिन उनके बीच कुछ मूलभूत विवाद अभी भी बने हुए हैं. ऐसे में दोनों देशों के आपसी रिश्तों के भविष्य को लेकर भारत की विदेश नीति की भूमिका काफ़ी अहम हो जाती है. भारत की पूर्व विदेश सचिव निरुपमा राव कहती हैं कि "पिछले 45...

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अर्थात्ः आने वाला कोई तूफान है!

-इंडिया टूडे, प्रत्येक शांति शुभ नहीं होती! जैसे तूफान से पहले की शांति. बैंक की बोर्ड मीटिंग से निकलते हुए पुराने बैंकर ने यह बात कही और फिर ऑफिस के गलियारों में गुम हो गया. उधर, बैंक के आला अफसर ताजा सुर्खियों के मतलब समझने में जुटे थे. ■ नीति आयोग ने तीन बैंकों (पंजाब ऐंड सिंध, यूको, बैंक ऑफ महाराष्ट्र) का तत्काल निजीकरण करने को कहा है, जिन्हें कोई बड़ा सरकारी...

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मोदी सरकार और रिजर्व बैंक 2008 के संकट में की गई भूलों से सबक ले सकते हैं, मगर समय हाथ से निकल रहा है

-द प्रिंट, लॉकडाउन में पांचवां महीना बीत रहा है मगर कोविड-19 की महामारी खत्म होने का नाम नहीं ले रही है और अर्थव्यवस्था निरंतर नीचे फिसलती जा रही है. आधुनिक भारत ने ऐसी महामारी पहले नहीं झेली थी, लेकिन इसका आर्थिक प्रभाव जाना-पहचाना है— सुस्त आर्थिक वृद्धि, ऊंची मुद्रास्फीति, और बेहिसाब बुरे कर्जों का घातक मेल. 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट (जीएफसी) के बाद के दौर में भी यही स्थिति थी....

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