7 अक्टूबर, 2013। अहमदाबाद के मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट कोर्ट भवन का आठवां माला। कक्ष नंबर, 21, मुझे यहीं बुलाया था उन्होंने। अहमदाबाद के तमाम सरकारी दफ्तरों की तरह इस कोर्ट के तमाम कक्षों के बाहर गुजराती में लिखी तख्तियां लटकी हुई हैं। गुजराती लिपि कुछ-कुछ हिंदी से मिलती-जुलती है। मैं पढ़ने की कोशिश करता हूं। गुजराती कुछ-कुछ घुमावदार है, मगर तमिल, तेलुगू या मलयालम की तरह नहीं। कुछ अक्षर तो हिंदी...
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कुप्रबंध की संस्कृति- हरिवंश
देश, वाचाल वृत्ति, बौद्धिक विलासिता, पर-उपदेश वगैरह की ‘लचर जीवन संस्कृति’ से नहीं चलता. आज के भारत में सरकार, राजनीति से लेकर समाज स्तर पर यही जीवन संस्कृति है. अमर्त्य सेन जिस ‘आर्ग्यूमेंटेटिव इंडिया’ (बहस में डूबे भारत) की बात करते हैं, उसे जमीन पर देखें-समझें तो बात ज्यादा स्पष्ट और साफ होती है. मूलत: हम बातूनी लोग हैं, बिना कर्म बात-बहस करनेवाले. किसी के बारे में कुछ भी टिप्पणी....
More »इनकार का मताधिकार- कुमार प्रशांत
जनसत्ता 3 अक्तूबर, 2013 : बरसों-बरस से जिसकी मांग की जा रही थी, वह संसद से भले न मिल सका, न्यायालय से तो मिला! भारतीय मतदाता को यह अधिकार मिला कि वह चुनाव में विभिन्न पार्टियों द्वारा खड़े किए गए उम्मीदवारों को अपने विवेक की कसौटी पर कसे और अगर उसे लगे कि सभी एक ही थैली के चट्टे-बट्टे हैं तो वह सबको रद्द करने का बटन दबा सके। मतलब...
More »नौकरी देने वाला स्थायी उपाय नहीं है नरेगा: जयराम रमेश
नई दिल्ली। ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश का कहना है कि राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना देश के ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार दिलाने का कोई स्थायी उपाय नहीं है। ‘आईडीएफसी लिमिटेड की भारतीय ग्रामीण विकास रिपोर्ट 2013’ को जारी करते हुए रमेश ने कहा, ‘‘मैं नरेगा को स्थायी रोजगार पैदा करने वाला कार्यक्रम नहीं मानता। यह उन इलाकों में 20 से 25 साल का अवस्थांतरण कार्यक्रम है, जहां रोजगार का और...
More »शिक्षा केंद्र, बुद्धिजीवी और सत्ता- आनंद कुमार
जनसत्ता 25 सितंबर, 2013 : किसी भी लोकतांत्रिक समाज में सरकार और शिक्षा केंद्रों के बीच का संबंध हमेशा एक सृजनशील तनाव से निर्मित होता है। सरकार की तरफ से शायद ही कभी ऐसा प्रयास हो, जिसमें शिक्षा केंद्रों को अधिकतम स्वायत्तता मिलती है, क्योंकि सरकार शिक्षा केंद्रों में चल रहे ज्ञान-मंथन, तथ्य-विश्लेषण और विद्वानों की स्वतंत्र शोध-क्षमता से सशंकित रहती है। सरकार का काम हमेशा कुछ आधा और कुछ पूरा-...
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