नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बनने जा रही नई सरकार से सबको काफी अपेक्षाएं हैं। इस वक्त आम आदमी की सबसे बड़ी चिंता महंगाई को लेकर है। महंगाई का आंकड़ा दो अंकों के करीब पहुंच चुका है और अल नीनो के असर के कारण सूखे की आशंका बढ़ती जा रही है। ऐसे में महंगाई की चुनौती से पार पाना नई सरकार के लिए आसान नहीं होगा। महंगाई नियंत्रण के लिए हर...
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वाम के लिए सबक- अरुण माहेश्वरी
जनसत्ता 21 मई, 2014 : सोलहवीं लोकसभा के चुनाव में नरेंद्र मोदी और भाजपा की भारी लेकिन एक प्रकार से प्रत्याशित जीत ही हुई है। चुनाव प्रचार के दौरान ही इसके सारे संकेत मिलने लगे थे। फिर भी हमारे इधर के कई मंतव्यों से यह साफ है कि हम सामने दिखाई दे रहे इस सच को संभवत: समझ या स्वीकार नहीं पा रहे थे। हालांकि हमने ही अपनी एक टिप्पणी...
More »विकास मॉडलों के शोर में गुम मजदूर- रौशन किशोर/जीको दासगु्प्ता
चुनावी बहस-मुबाहिसों में विकास की चर्चा तो खूब है, लेकिन इस विकास का आधार और देश की आबादी का सबसे बड़ा हिस्सा मजदूर कहीं प्रमुख मुद्दा नहीं है. घोषणापत्रों में श्रमिकों के मसलों को शामिल तो किया गया है, लेकिन उनके लिए कोई ठोस कार्ययोजना नहीं है. देश में मजदूर वर्ग निरंतर शोषण और दमन का शिकार बनता रहा है. ‘मई दिवस’ के मौके पर मजदूरों से जुड़े मसलों को रेखांकित...
More »खेती-किसानी के मुद्दे गायब हैं चुनाव से- महक सिंह
चुनाव के दौरान सांप्रदायिकता, क्षेत्रवाद और व्यक्तिवाद की बातें की जा रही हैं, पर गांव, खेती और 54 प्रतिशत जनता के मुद्दे गौण हैं। कृषि क्षेत्र में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी), पूंजी निर्माण और कृषि निर्यात लगातार घटते जा रहे हैं। 1950-51 में जीडीपी में कृषि की भागीदारी 53.1 प्रतिशत थी, जो 2012-13 में घटकर 13.7 प्रतिशत रह गई। गांव-शहर तथा किसान-गैर किसान के बीच खाई बढ़ती जा रही है।...
More »यूपीए तथा एनडीए का अर्थशास्त्र- डा. भरत झुनझुनवाला
विकास दर में वर्तमान गिरावट का कारण सरकारी राजस्व का रिसाव, भ्रष्टाचार में वृद्घि एवं चौतरफा कुशासन है. यह रिसाव बंद हो जाये तो उद्यमी निवेश करने लगेगा, उत्पादन बढ़ेगा, टैक्स की वसूली होगी और वित्तीय घाटा नियंत्रण में आ जायेगा. अपने चुनावी घोषणापत्र में एनडीए ने एफडीआइ का विरोध तो किया है, पर एनडीए मूल रूप से अर्थव्यवस्था में बहुराष्ट्रीय कंपनियों के प्रवेश का स्वागत करता है. उनका विरोध खुदरा...
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