रांची जिले के ओरमांझी प्रखंड की चकला पंचायत के मुखिया बल्लू पाहन के लिए मुखिया बनना बहुत जरूरी नहीं था, उनका व्यक्तित्व ही कुछ ऐसा है कि उनके गांव-पंचायत ही नहीं आसपास के गांव के लोग भी उन्हें मुखिया ही मानते हैं. वे झारखंड प्रदेश सरना पहरा समाज, मुत्रा पतरा के संरक्षक भी हैं और प्रखंड के मुखिया संघ के अध्यक्ष भी. मुखिया बनने से पहले भी वे अपने गांव का चक्कर लगा...
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कागजों में पंचायती राज
स्तरीय पंचायती राज को ताकत देने के लिए संविधान में 1992 में बड़ा संशोधन हुआ और यह उम्मीद की गयी कि नयी पंचायती राज व्यवस्था पूरी तरह सशक्त, कारगर और अभिनव होगी, लेकिन ऐसा हुआ नहीं. पंचायती राज को कानून की ताकत मिली हुई है.पंचायती राज को कानून की ताकत मिली हुई है. इसकी अपनी खूबियां हैं, जो समृद्ध, विकसित, खुशहाल और सर्मथ गांवों की परिकल्पना पर टिकी है. इन खूबियों...
More »किसानों को आत्मनिर्भर बनाता एक कोऑपरेटिव
कृषि के क्षेत्र में किसानों को उत्रत तकनीक मुहैया कराकर उनके जीवन स्तर को बेहतर बनाना और गांवों में बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराकर विकास करना, यह लक्ष्य है मूलकात्रूर कोऑपरेटिव बैंक और मार्केटिंग सोसाइटी लिमिटेड का. रजनीश आनंद की विस्तृत रिपोर्ट पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें:- ...
More »बीपीएल के चक्कर से मुक्त सरकारी योजनाएं
बीपीएल सर्वेक्षण, सूची निर्माण और बीपीएल सूची में शामिल होने की होड़ का सच एक ऐसी तसवीर पेश करता है, जो सरकारी लाभ पाने की हमारे ग्रामीण समाज की जरूरत और भूख की दिशाहीनता दरसाता है. अव्वल तो बीपीएल सूची में शामिल लोगों को उनका वाजिब हक देने में तंत्र के हाथ-पांव फूल रहे हैं. इस सूची में शामिल गरीब लाभ से वंचित हैं. दूसरी ओर बड़ी संख्या में अमीर और सक्षम परिवार गरीबों...
More »आरक्षण की उलझन- योगेश अटल
जनसत्ता 20 अप्रैल, 2013: अब आरक्षण से जुड़ा आज का प्रश्न। नए भारत का संविधान रचने वालों ने प्रारंभ में इसकी आवश्यकता को नहीं स्वीकारा। कहा जाता है कि खुद आंबेडकर इसके पक्ष में नहीं थे। बड़े संकोच के साथ उन्होंने इस सुझाव को सम्मिलित किया और वह भी केवल चुनिंदा समूहों के लिए और प्रारंभ के कुछ वर्षों के लिए। आरक्षण का प्रावधान उन जातियों और आदिवासी समूहों के...
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