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अफसर चाहते हैं भ्रष्टाचार : राजेश दुबे

भोपाल. ‘मप्र में सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) भ्रष्टाचार के दलदल में फंसी है। लगभग हर दुकान पर रिश्वतखोरी और कालाबाजारी का बोलबाला है। बिना रिश्वत दिए यहां कोई काम नहीं होता। अपने फायदे के लिए नौकरशाह भी चाहते हैं पीडीएस में भ्रष्टाचार चलता रहे।’ यह टिप्पणी किसी विपक्षी दल की नहीं है बल्कि पीडीएस की छानबीन के लिए सुप्रीमकोर्ट के निर्देश पर बनी एक सदस्यीय जस्टिस डीपी वाधवा कमेटी की है। कमेटी ने सितंबर...

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कहां कितना भ्रष्टाचार- आंकड़ों के आईने में...

क्या आप जानते हैं कि साल 2000 से 2009 के बीच महाराष्ट्र में भ्रष्टाचार के सर्वाधिक मामले (4566) और  पश्चिम बंगाल में भ्रष्टाचार के सबसे कम मामले (केवल 9) दर्ज हुए। क्या आप यह भी जानना चाहते हैं कि गुजरे दस सालों में देश के अलग-अलग सूबों में भ्रष्टाचारियों से कितनी रकम वापस हासिल की गई। भ्रष्टाचार के मामलों पर विधिवत नजर रखनी हो तो कहां जायें। कैसे पता चले कि केंद्र और राज्यों में...

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शख्शियत बड़ी या संदेश- राजदीप सरदेसाई

‘क्या आप जानते हैं कि हमारे देश में चुनाव कैसे होते हैं? पिता के लिए शराब, मां के लिए कपड़े और बच्चे के लिए भोजन।’ ‘आखिर इस देश में क्या भ्रष्ट नहीं है? भारत का केंद्रीय व्यसन या दोष भ्रष्टाचार है; भ्रष्टाचार की केंद्रीय धुरी है चुनावी भ्रष्टाचार; और चुनावी भ्रष्टाचार की केंद्रीय धुरी हैं कारोबारी घराने।’ उपरोक्त उक्तियां अन्ना हजारे द्वारा कही गई बातों जैसी लगती हैं। हालांकि ये बातें...

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सांसदों को साध कर रखते हैं उद्योग घराने

नई दिल्ली। ऐसे समय में जब संसद विवादित लोकपाल विधेयक पर चर्चा करने की तैयारी में है, एक पूर्व नौकरशाह ने कहा है कि ज्यादातर उद्योग घराने सरकारी नीतियों को प्रभावित करने या अपने पक्ष में निर्णय के लिए सासदों को साध कर रखते हैं। आर्थिक खुफिया ब्यूरो के पूर्व महानिदेशक बी.वी. कुमार ने अपनी नई किताब 'दि डार्कर साइड आफ ब्लैक मनी' में लिखा है कि कुछ बड़े उद्योग घराने...

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लोकतंत्र में शॉर्टकट नहीं होता : हर्ष मंदर

वह भारतीय लोकतंत्र के लिए एक अत्यंत महत्वपूर्ण क्षण था, जब देशभर के मध्यवर्गीय युवा भ्रष्ट प्रशासन के प्रति आक्रोश व्यक्त करने के लिए एकजुट हुए। हमारा देश कई विरोध प्रदर्शनों का साक्षी रहा है। कुछ हिंसक तो कुछ शांतिपूर्ण। कुछ वेतन व भूमि के लिए तो कुछ आत्मसम्मान व मानवाधिकारों के लिए। लेकिन यह आंदोलन कुछ अलग था। दशकों बाद हमने शिक्षित और संपन्न युवाओं को इतने बड़े पैमाने पर...

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