बहुत साल हो गए, जब मेरा सामना पर्यावरण संबंधी जिम्मेदारी की चौंकानी वाली परिभाषा से हुआ था, ‘हम एक सीमित क्षेत्र के भीतर से जो कुछ भी चाहते हैं, उसका उत्पादन करते हैं, तो हम उत्पादन के तरीकों की निगरानी की स्थिति में होते हैं; जबकि अगर हम पृथ्वी के किसी अन्य छोर से अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं, तो वहां उत्पादन की स्थितियों की गारंटी देना हमारे लिए...
More »SEARCH RESULT
असम और बिहार में बाढ़ से 55 और उत्तर प्रदेश में वर्षा जनित हादसों में 14 लोगों की मौत
नई दिल्ली/पटना/लखनऊ/गुवाहाटी/तिरुवनंतपुरम: बिहार और असम में बाढ़ का कहर जारी है और दोनों राज्यों में इसके कारण मरने वालों की संख्या बीते मंगलवार तक बढ़कर 55 हो गई. इस बीच उत्तर प्रदेश में भी वर्षाजनित हादसों में 14 लोगों की मौत हो गई. वहीं, केरल में बेहद भारी बारिश की भविष्यवाणी के बाद रेड अलर्ट जारी किया गया है. मौसम विभाग ने राज्य में बेहद भारी बारिश की संभावना जताई है. एक...
More »अगर आप समाचारों के ऑनलाइन पाठक हैं तो ये न्यूज एलर्ट जरुर पढ़ें!
भारत में समाचारों के आस्वाद की दुनिया तेजी से बदली है : लोगों का समाचारों पर से विश्वास घटा है और समाचार के पाठकों की दुनिया की एक बड़ी तादाद को आशंका सताती है कि सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर अपने राजनीतिक विचारों का इजहार किया तो उन्हें अधिकारी-वर्ग से परेशानी उठानी पड़ेगी. अंग्रेजी भाषी पाठकों के बीच किये गये एक सर्वेक्षण के मुताबिक टेलिविजन, अखबार या फिर रेडियो नहीं बल्कि समाचार हासिल करने...
More »मतदान से पहले कितना सोचते हैं हम-- बीजू डॉमिनिक
क्या वोटिंग एक तर्कसंगत प्रक्रिया है? यदि ऐसा है, तब तो आम मतदाता अपने फैसले पर पहुंचने से पहले काफी सोच-विचार करता होगा। मसलन, उम्मीदवार किस पार्टी से हैं? साल 2014 में जो पार्टी सत्ता में आई थी, उसने क्या-क्या वादे किए थे? उनमें से कितने प्रतिशत वादे पूरे हुए? उन्होंने जो वादे किए थे, उन्हें पूरा न कर पाने के लिए क्या उनके पास वाजिब वजहें हैं? किस पार्टी...
More »नागरिक होने का अर्थ केवल ज़िंदा रहना और वोट डालना भर रह गया है- रेयाजुल हक
हम एक अनोखे मुकाम पर खड़े हैं; देश में चुनाव हो रहे हैं और लोकतंत्र के भविष्य और जनता के लोकतांत्रिक अधिकारों को लेकर चिंता गहराती जा रही है. क्या चुनाव वो जादुई कालीन नहीं बताए गए थे, जिन पर सवार होकर लोकतंत्र हमारी उम्मीदों के आसमान में एक खुशहाल भविष्य के रंग बिखेरने वाला था? फिर ऐसा क्यों है कि ठीक चुनावों के दौरान समाज में बेचैनी और चिंताएं मज़बूत...
More »