इतने कम अंतराल में दक्षिण एशिया में आए दो बड़े भूकंप से हमें कुछ तो सीखना ही होगा। पहले नेपाल में और अब अफगानिस्तान में आया भूकंप यह संकेत है कि हमें नए सिरे से पर्यावरण को समझना होगा। पर्यावरण और भूकंप दो अलग-अलग विषय हो सकते हैं, पर भूकंप की वजह से होने वाले नुकसान से पता चलता है कि पर्यावरण के प्रति हमारा व्यवहार कैसा हो गया है। पृथ्वी...
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इस अतिवाद का मुकाबला कैसे करें- योगेन्द्र यादव
एक ही महीने में राष्ट्रपति ने दूसरी बार सहिष्णुता की याद दिलाई है। प्रधानमंत्री ने भी दादरी में अखलाक की हत्या पर अफसोस जता दिया है। और तो और, अमित शाह ने बीजेपी के बड़बोले नेताओं को फटकार लगा दी है। कई लोग सोच रहे होंगे कि अब और क्या चाहिए? मन ही मन कह रहे होंगे कि अब तो दादरी वाले इस मुद्दे को खत्म करो। टीवी चैनलों के न्यूज...
More »धर्मनिरपेक्ष नेतृत्व की चुप्पी का फल-- राजदीप सरदेसाई
सुधींद्र कुलकर्णी से बहुत पहले निखिल वागले और आपके इस मामूली स्तंभकार जैसे कई लोग शिवसेना के शिकार बन चुके हैं। 1991 में शिवसेना ने भारत-पाक क्रिकेट शृंखला के विरोध में वानखेड़े स्टेडियम का पिच खोद दिया था। मैंने इसकी कठोरतम शब्दों में आलोचना करते हुए लेख लिखा। जहां मैं काम करता था उस टाइम्स ऑफ इंडिया, मुंबई के दफ्तर के बाहर काले झंडे दिखाए गए, अपशब्द कहे गए, लेकिन...
More »अति पिछड़ों की राजनीतिक भूमिका-- बद्री नारायण
बिहार में अब सिर्फ दलितों और पिछड़ों की राजनीति नहीं हो रही, इसकी राजनीति का नया रुझान महादलित और अति पिछड़ों से जुड़ा है। ये दो श्रेणियां बताती हैं कि जिन्हें हम दलित और पिछड़े वर्गों की तरह देखते हैं, उनका स्वरूप हर जगह एक सा नहीं है। इन वर्गों के भीतर भी गैर-बराबरी, ऊंच-नीच या भेदभाव है। इसके चलते संसाधनों का समान वितरण नहीं हो पाता। इनके भीतर भी ऐसी...
More »मैली होकर बेकार हो जायेंगी नदियां
नदियां हमारी संस्कृति की खेवनहार हैं. ये महज जल का स्रोत नहीं, बल्कि हमारे सुख-दुख की साथी हैं. लेकिन विकास की अंधी दौड़ में हम इन्हें इतना गंदा कर चुके हैं कि अधिकांश नदियां अब किसी काम की नहीं रह गयी हैं. पितृपक्ष पर पितरों को तर्पण के लिए यमुना के केशीघाट पर पहुंचे आइआइटी मद्रास के सेवानिवृत्त प्रोफेसर श्रीश चौधरी का कैसा रहा अनुभव, आइए जानें श्रीश...
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