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मीडिया समझे अपना दायित्व-- विश्वनाथ सचदेव

कुछ दिनों पहले भारत-पाक के बीच एक क्रिकेट मैच हुआ था. उस दिन जिसने भी टीवी देखा होगा, तो वह सबेरे से ही एक युद्धोन्माद का गवाह बना होगा. लगभग हर समाचार चैनल पर सबेरे से ही रथी-महारथी जुट गये थे. क्रिकेट की बात तो हो रही थी, पर उससे कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण था वह नकली जोश, जो स्टूडियो में, और स्टूडियो से बाहर अलग-अलग लोकेशनों पर दिखाया जा रहा...

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नदी जोड़ योजना पर पुनर्विचार जरूरी-- पंकज चतुर्वेदी

अभी केंद्र सरकार ने तय कर दिया है कि भारत पेरिस जलवायु समझौते पर अमल करेगा और अपने यहां कार्बन उत्सर्जन घटाने पर गंभीरता से काम करेगा। ठीक उसी समय हुक्मरान तय कर चुके हैं कि देश में नदियों को जोड़ने की परियोजना लागू करना ही है और उसकी शुरुआत बुंदेलखंड से होगी जहां केन व बेतवा को जोड़ा जाएगा। असल में आम आदमी नदियों को जोड़ने का अर्थ समझता...

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सत्ता का संदेश- जय किसान जवान-- मुकेश भारद्वाज

आजादी के बाद भूमि सुधार की बात तो हुई लेकिन यह किसी पार्टी के एजंडे में नहीं रहा। विषमताओं और गैरबराबरी वाले भारत में इस बुनियादी मुद्दे को भुला महाजनों और मानसून पर निर्भर किसानों को विश्व बाजार के मंच पर अकेला छोड़ दिया गया। स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों पर सभी सरकारें चुप हैं। जब लोगों के जीने-मरने का सवाल पैदा हो रहा हो तो उनके सामने नोटबंदी और डिजिटल...

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विकास की बड़ी जिम्मेदारी है इस आयोग पर-- एन के सिंह

तीन साल पहले योजना आयोग को खत्म करके उसकी जगह एक थिंक टैंक के तौर पर नीति आयोग का गठन किया गया था। आलोचक यह सवाल अब तक उठाते हैं कि क्या यह बदलाव मुनासिब साबित हुआ? इस सवाल का जवाब ढूंढ़ने से पहले यह बताना चाहूंगा कि योजना आयोग के तीन बुनियादी काम थे। पहला, केंद्र और राज्यों के बीच सेतु का काम करना। दूसरा, हमारी विकास संबंधी नीतियों...

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हरित क्रांति की जमीन पर किसानों की खुदकुशी-- संजीव शर्मा

पंजाब में पिछले एक दशक के दौरान हुई किसान आत्महत्या की घटनाओं ने सरकारी तंत्र पर हमेशा सवाल खडेÞ किए हैं। राज्य में भले ही सत्ता परिवर्तन हो गया है लेकिन किसानों की हालत में कोई सुधार नहीं हुआ है। आज भी सूबे के किसान लगातार आत्महत्या कर रहे हैं। पंजाब में सत्ता परिवर्तन को करीब तीन माह हुए हैं और इन तीन महीनों के दौरान करीब 60 किसान मौत...

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