भारत के ग्रामीण इलाके में यातायात की व्यवस्था बेहतर बनाने के लिए नरेंद्र मोदी सरकार ने महिला स्वयंसेवी समूहों (एसएचजी) की मदद लेने का फैसला किया है। माना जा रहा है कि इस साल 15 अगस्त को प्रधानमंत्री ग्रामीण परिवहन योजना का शुभारम्भ किया जाएगा जिसमें महिलाओं की अहम भूमिका होगी। भारत के ग्रामीण विकास मंत्रालय के सचिव अमरजीत सिन्हा ने बताया कि ये योजना पहले देश के 250 ब्लॉक...
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रोजी बनाम राम- एकै साधे सब सधे--- मुकेश भारद्वाज
सरकार के हर मंच से नोटबंदी को सही बताने के बाद 2016-17 की चौथी तिमाही के आंकड़े बताते हैं कि सकल घरेलू उत्पाद दर घट कर 7.1 से 6.1 फीसद पर आ गई। बाजार में तरलता की कमी से मांग घटी और छोटे कारोबारियों की कमर टूट गई। अब जबकि जीएसटी के अमल का समय नजदीक आ रहा है, सरकार जमीनी सच्चाई को नकारते हुए कमजोर अर्थव्यवस्था का ठीकरा...
More »जीवन चाहिए, मृत्युदंड नहीं- रुचिरा गुप्ता
पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या की वर्षगांठ पर मुझे एक बात याद आयी. उनकी विधवा, सोनिया गांधी, ने राष्ट्रपति को एक खत में लिखा था कि वे और उनके दोनों बच्चे- राहुल और प्रियंका- राजीव की मृत्यु से अत्यंत पीड़ित हैं, पर वे नहीं चाहते कि राजीव के हत्यारों को मृत्युदंड दिया जाये. सुप्रीम कोर्ट ने आखिरकर राजीव के हत्यारों को उम्र कैद की सजा दी. इंदिरा गांधी...
More »कारोबार बनाम आहार-- रमेश कुमार दूबे
वर्ष 2008 की विश्वव्यापी मंदी के बाद शुरू हुई खेती की जमीन के अधिग्रहण की प्रकिया भले ही अब मंद पड़ गई हो लेकिन वैश्विक खाद्य तंत्र पर कब्जा जमाने की प्रवृत्ति में कोई कमी नहीं आई है। छोटी जोतों और स्थानीय खाद्य बाजार की जगह वैश्विक खाद्य आपूर्ति तंत्र स्थापित करने की जो प्रक्रिया दूसरे विश्वयुद्ध के बाद यूरोप-अमेरिका में शुरू हुई थी वह अब तीसरी दुनिया को अपनी...
More »प्रचारों पर टिकीं उपलब्धियां-- पवन कुमार वर्मा
संसार की सच्चाइयों के परे, क्या कहीं प्रचार-प्रसार की कोई सीमा भी है? क्या सभी चीजें उनकी वास्तविकताओं में नहीं, वरन उनकी प्रस्तुति में ही परखी जा सकती हैं? क्या सत्य स्व-विज्ञापन के वाष्प से सृजित एक मरीचिका मात्र है? या कि यदि विज्ञापन अपने दावे के अतिरेक की वजह से वास्तविकता से बहुत विलग हो जाये, तो वह स्व-विनाशक भी हो उठता है? हमारी वर्तमान सरकार प्रचार की जिस...
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