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डब्ल्यूटीओ का खाद्यान्नों की सरकारी खरीद को उत्पादन के 15 फीसदी तक सीमित करने का प्रस्ताव

-गांव सवेरा,  नवंबर के अंत में विश्व व्यापार संगठन  (डब्ल्यूटीओ) की कृषि पर समझौते (एओए) को लेकर 12वीं मंत्रीस्तरीय सम्मेलन (एमसी 12) बैठक होने वाली है। एमसी12 के एजेंडा के दो प्रस्ताव देश के किसानों के घातक साबित हो सकते हैं। इसके एक एजेंडा प्रस्ताव में कहा गया है कि गरीबों के लिए सब्सिडी पर खाद्यान्न मुहैया कराने के लिए और कम संसाधनों वाले किसानों की आजीविका सुरक्षा के लिए बनाये जाने...

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चीन और श्रीलंका के बीच 'ज़हरीले' खाद पर विवाद का पूरा मामला क्या है?

-बीबीसी, चीन से श्रीलंका आया एक कार्गो कहने के बावजूद श्रीलंकाई तट से हटने से मना कर रहा है. दरअसल चीन से एक ग़लत शिपमेंट श्रीलंका पहुंचने से यह पूरी समस्या खड़ी हुई लेकिन इसकी वजह से इन दो सहयोगी देशों के बीच एक कूटनीतिक खींचतान देखने को मिल रही है जिसमें न केवल एक बैंक को ब्लैकलिस्ट किया गया बल्कि किसानों और वैज्ञानिकों का एक समूह भी विरोध पर उतर आया...

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असम के दक्षिण-पश्चिमी जिलों में स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति बेहद दयनीय – I

-न्यूजक्लिक, दुनियाभर में कोविड-19 के प्रसार ने एक प्रकार से भानुमति का पिटारा ही खोलकर रख दिया है, क्योंकि अधिकाँश देशों में मामलों की संख्या में दिन-दूनी रात-चौगुनी वृद्धि से निपटने के मामलों में बुनियादी स्वास्थ्य सेवाओं को बेहद अपर्याप्त पाया गया था। कई देशों में मौतों को रोक पाना बेहद दुष्कर कार्य जान पड़ा। महामारी ने वैज्ञानिक समुदाय के सामने एक हिमालय जैसी अलंघ्यनीय चुनौती पेश कर दी थी –...

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नोटबंदी के पांच साल बाद मोदी सरकार के पास इसकी सफलता बताने के लिए कुछ भी नहीं है

-द वायर, भारतीय अर्थव्यवस्था अभी तक नोटबंदी के साए से बाहर नहीं निकल पाई है. भारतीय रिजर्व बैंक ने जानकारी दी है कि भारत के नागरिकों के हाथों में नकद ऐतिहासिक स्तर पर है. 4 नवंबर, 2016 को यह 17.5 ट्रिलियन रुपये था. 8 अक्टूबर, 2021 को यह 57 फीसदी के जबरदस्त उछाल के साथ 28 ट्रिलियन रुपये हो चुका है. इसका नतीजा यह है कि भारत का नकद-जीडीपी अनुपात अब बढ़कर...

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मीठा देने वाले गन्ना मजदूर एक-एक निवाले को मोहताज क्यों?

-कारवां, एक तरफ, देश की राजधानी दिल्ली की सीमाओं पर किसान केंद्र सरकार के तीन कृषि कानूनों के विरोध में आंदोलन कर रहे हैं, दूसरी तरफ महाराष्ट्र के मराठवाड़ा में शोषण का ऐसा जाल बिछा हुआ है, जो हमें दिखाई तो नहीं देता है लेकिन दिन-ब-दिन अधिक फैलता और कसता जा रहा है. गन्ने की खेती के इस जाल में फंसे मजदूर और छोटे किसान अपनी बेबसी का रोना रो रहे हैं....

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