किसी भी समाज का सबसे बड़ा अपमान उसके दर्द, उसके इतिहास और उसके संघर्ष को नकारना होता है. कश्मीरी हिंदुओं के साथ यही हुआ. तमाम सेकुलर-जेहादियों ने पुस्तकें लिख डालीं कि कश्मीर घाटी से हिंदू अपने सदियों पुराने घर-बागीचे अपनी मर्जी से छोड़ आये, ताकि मुसलमान बदनाम किये जा सकें. आज महाराष्ट्र में दलितों के असंतोष को न तो हल्के ढंग से लेना चाहिए, न ही इसका सारा श्रेय...
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नये साल में विकास की चुनौतियां-- मणीन्द्र नाथ ठाकुर
बिहार और झारखंड जैसे राज्यों के सामने आनेवाले साल में क्या चुनौतियां हैं? विडंबना यह है कि प्राकृतिक संपदा और उपजाऊ जमीन के बावजूद ये राज्य भारत के सबसे गरीब राज्यों में आते हैं. कमाल की बात यह है कि यहां के मानव संसाधन का लोहा दुनिया मानती है. कई विद्वानों के लिए यह एक पहेली है. मुझे याद है कि लंदन स्कूल ऑफ इकोनाॅमिक्स के प्रो जॉन हैरिस ने...
More »पढ़ाई का परिदृश्य-- कालू राम शर्मा
हम आज भी मैकाले को खलनायक के रूप में याद करते नहीं थकते हैं। अंगेजों के राज में एक खास प्रकार की शिक्षा-व्यवस्था रची गई थी, जो तब अंग्रेजी राज की जरूरतों के मुताबिक थी। आजादी पाने के पहले ही गांधीजी उस शिक्षा-व्यवस्था से न केवल व्यथित थे, बल्कि उनमें एक आक्रोश था और इसका उन्होेंने हल भी खोजा कि शिक्षा ऐसी हो जो देश की सामाजिक स्थिति और यहां...
More »समतामूलक रहा है मुंडा समाज-- डॉ खातिर हेमरोम /रेमिस कंडुलना
मुंडा जितनी प्राचीन जाति है, उतना ही उसका इतिहास भी प्राचीन है. किंतु इसके इतिहास को गौण कर दिया गया है. भारत में इसका पुख्ता प्रमाण प्राचीन भारतीय सभ्यताओं के खुदाई के अवशेषों में मिलते हैं. पाषाण कालीन सभ्यता की संस्कृति मुंडाओं के कुल पुरखों की है. इनके पुरखों की याद में एवं उनके श्रद्धा सम्मान में पूर्वजों की आत्मा को सुरक्षित रखते हुए वर्तमान तक ससनदिरि में रखकर संस्कार...
More »टिकाऊ विकास की उर्जा-- रमेश सर्राफ धमोरा
भारत में हर साल चौदह दिसंबर को राष्ट्रीय ऊर्जा संरक्षण दिवस मनाया जाता है। भारत सरकार ने वर्ष 2001 में ऊर्जा संरक्षण अधिनियम लागू किया था। इस अधिनियम में ऊर्जा के गैर-पारंपरिक स्रोतों को इस्तेमाल में लाने के लिए बड़े पैमाने पर तैयारी करना, पारंपरिक स्रोतों के संरक्षण के लिए नियम बनाना आदि शामिल था। भारत में राष्ट्रीय ऊर्जा संरक्षण दिवस मनाने का मकसद लोगों को ऊर्जा के महत्त्व के...
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