जनसत्ता 12 दिसंबर, 2012: व्यापार और युद्ध-अभियान- सभ्यताओं के बीच संपर्क के यही दो प्रमुख माध्यम रहे हैं। यों, आप्रवास को भी एक माध्यम गिना जा सकता है, सबसे आदि कारण, जिसमें एक स्थान पर बसने वाला आदि मनुष्य-समूह भोजन या संसाधनों की खोज में एक स्थान से दूसरे स्थान पर विचरता था, लेकिन इसकी परिणति भी अंतत: युद्धों और समझौतों में ही होती थी। बाद में सभ्यता के विकास के साथ...
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महिला सशक्तीकरण के मामले में भारत 115वें स्थान पर
मेलबर्न, 16 अक्तूबर (भाषा)। महिलाओं के आर्थिक सशक्तीकरण के लिहाज से भारत की स्थिति अच्छी नहीं है। इस मामले में किए गए एक सर्वे में 128 देशों की सूची में दक्षिण एशियाई देश 115वें स्थान पर हैं। सूची में सबसे ऊपर आस्ट्रेलिया है। उसके बाद क्रमश: नार्वे, स्वीडन तथा फिनलैंड का स्थान है। वहीं निचले पायदान पर यमन, पाकिस्तान, सूडान तथा चाड हैं। अंतरराष्ट्रीय परामर्श तथा प्रबंधन कंपनी बूज एंड कंपनी के इस...
More »भारत की आधुनिकता का बड़बड़झाला- कृष्ण कुमार
तमिलनाडु के मदुरैई जिले की एक स्कूल प्राचार्या ने उन दो लड़कियों को स्कूल में प्रवेश देने से मना कर दिया जिनका विवाह उनके माता पिता ने कक्षा 10वीं पास करने के बाद कर दिया था। प्रारंभिक तौर पर यह ऐसा लगता है कि प्राचार्या ने अपनी शक्ति का गलत इस्तेमाल किया। साथ ही व्यापक सामाजिक संदर्भ में यह बड़ा अजीब लगता है और यह अस्वीकार्य भी है कि किसी लड़की को शिक्षा का...
More »इक्कीसवीं सदी की बाधा दौड़- सुभाष गताड़े
महाराष्ट्र के नागपुर क्षेत्र में अनुसूचित जाति, जनजाति एवं अन्य पिछड़ी जातियों से आने वाले दस हजार से अधिक छात्र सरकार के समाज कल्याण महकमे की आपराधिक लापरवाही के चलते क्या प्रोफेशनल पाठ्यक्रमों में इस साल प्रवेश नहीं ले सकेंगे? और शासकीय कॉलेजों में उनके प्रवेश को महज इसी वजह से रोका जाएगा, क्योंकि उनके पास जाति वैधता प्रमाणपत्र नहीं हैं, जबकि इन तमाम छात्रों ने सालभर पहले ही आवेदन...
More »भ्रष्टाचार की गंगा का मुहाना बंद करना होगा- पी साईनाथ (अनुवाद मनीष शांडिल्य)
मनमोहनॉमिक्स के करीब 20 साल पूरे हो रहे हैं, अतः उस कोरस को याद करना बहुत वाजिब होगा, जिसका राग मुखर वर्ग पहले तो खूब गर्व से और फिर खुद को दिलासा देने के लिए अलापता रहा हैः 'आप चाहे जो भी कहें, हमारे पास डॉ मनमोहन सिंह के रूप में सबसे ईमानदार आदमी हैं. उनके खिलाफ एक शब्द भी नहीं बोला जा सकता'. लेकिन ऐसा अब कम सुनने को...
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