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बिहार- प्रारंभिक विद्यालयों में बहाल होगी गुणवत्तापूर्ण शिक्षा

पटना : राज्य के प्राथमिक व मध्य विद्यालयों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा बहाल की जायेगी. इसके लिए राज्य सरकार स्कूलों के प्रधानाध्यापक व प्रधान शिक्षकों को प्रशिक्षित करने जा रही है. शिक्षा विभाग इसका प्रस्ताव तैयार कर रहा है. हर प्रखंड के पांच-पांच बेहतर स्कूलों का चयन किया जायेगा, जहां बेहतर पढ़ाई, रिजल्ट के साथ-साथ अन्य संसाधन भी मौजूद हैं. उन स्कूलों में उस प्रखंड से वैसे स्कूल जहां बेहतर ढंग...

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दो रोटी से खुलेगा खाता, गरीबों को फ्री मिलेगा खाना

आनंद दुबे, भोपाल । अमूमन बैंकों में रुपए का ही लेन-देन होता है, लेकिन राजधानी में जल्द ही 'रोटी'बैंक खुलने वाला हैं। इसमें दानवीर दो रोटी या उनकी न्यूनतम कीमत 10 रुपए जमा करके अपना खाता खुलवा सकते हैं। बैंक में जमा रोटियां (गर्म सब्जी के साथ)जरुरतमंदों को मुफ्त में मिलेंगी। शहर के न्यूमार्केट क्षेत्र में प्रदेश का पहला और अनूठा बैंक 15 अगस्त-17 से प्रस्तावित है।   नादरा बस स्टैंड के...

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शिक्षा का बाजारवाद-- रमेश दवे

शिक्षा को जब हम अपने अतीत से जोड़ते हैं तो संस्कार की ध्वनि सुनाई देती है, लेकिन जब अपने वर्तमान समय से जोड़ते हैं तो विकार और व्यापार के विज्ञापनों के धमाके सुनने को मिलते हैं। वैश्वीकरण, बाजारवाद और उत्तर-आधुनिकता के इस तरह-तरह की मृत्यु-घोषणा के समय में अगर इतिहास, साहित्य, साहित्यकार या लेखक की मृत्यु पश्चिमी चिंतक घोषित करते रहे हैं, तो क्या यह सच नहीं है कि हम...

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अनदेखी से फूटा गुस्सा-- देविन्दर शर्मा

देश में जहां कहीं भी किसान अपनी मांगों को लेकर आंदोलन कर रहे हैं, उससे यह बात साफ हो जाती है कि आखिर कब तक किसान चुप रहेंगे और कब तक बर्दाश्त करते रहेंगे. यह एक बड़ी सच्चाई है कि पिछले 40-50 साल से किसानों के साथ अत्याचार यह हो रहा है कि एक डिजाइन के तहत उनको कमजोर करके रखा जा रहा है. बस, बीच-बीच में कभी-कभार उनकी मदद...

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कारोबार बनाम आहार-- रमेश कुमार दूबे

वर्ष 2008 की विश्वव्यापी मंदी के बाद शुरू हुई खेती की जमीन के अधिग्रहण की प्रकिया भले ही अब मंद पड़ गई हो लेकिन वैश्विक खाद्य तंत्र पर कब्जा जमाने की प्रवृत्ति में कोई कमी नहीं आई है। छोटी जोतों और स्थानीय खाद्य बाजार की जगह वैश्विक खाद्य आपूर्ति तंत्र स्थापित करने की जो प्रक्रिया दूसरे विश्वयुद्ध के बाद यूरोप-अमेरिका में शुरू हुई थी वह अब तीसरी दुनिया को अपनी...

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