सरकार का दावा है कि अर्थव्यवस्था 7.6 प्रतिशत की सम्मानजनक गति से आगे बढ़ रही है. हकीकत यह है कि जमीनी स्तर पर विकास नहीं दिख रहा है. महाराष्ट्र के सीमेंट विक्रेता ने बताया कि बिक्री 30 प्रतिशत कम है. दिल्ली के टैक्सी चालक ने कहा कि बुकिंग कम हो रही है. इसके विपरीत बड़ी कंपनियां ठीक-ठाक हैं. बहरहाल, आम आदमी का धंधा कमजोर है. संभवतया इसका प्रमुख कारण मोदी...
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मेडिकल कॉलेजों में जिला अस्पतालों से भी कम दवाएं
भोपाल (ब्यूरो)। बात एमजीएम मेडिकल कॉलेज से संबद्ध बड़े अस्पताल की हो या फिर भोपाल के हमीदिया अस्पताल की। इनमें अनेक सुपर स्पेशलिटी सेवाएं तो मिल जाती है, लेकिन मरीजों को दवाइयां नहीं मिलती। डॉक्टर केवल सलाह ही दे पाते हैं। कारण इन अस्पतालों की इसेंशियल ड्रग लिस्ट (ईडीएल) यानी आवश्यक दवाइयों की सूची में 35 तरह की दवाएं ही शुमार हैं।उधर, जिला अस्पतालों की ईडीएल में 300 दवाइयां हैं। इनमें...
More »सेहत की कीमत पर विकते खाद्य-- निरंकार सिंह
पिछले दिनों मैगी विवाद ने खाने-पीने की चीजों में मिलावट के मामले को चर्चा का विषय बना दिया था। ताजा मामला डबल रोटी में खतरनाक रसायनों के मिलाने का है। बहुत सारे घरों में सुबह नाश्ते के समय खाई जाने वाली बे्रड और बेकरी के उत्पादों में कैंसर पैदा करने वाले रसायनों का इस्तेमाल हो रहा है। सेंटर फार साइंस एंड इनवार्नमेंट (सीएसई) ने बे्रड, पाव, बन, बर्गर बे्रड और...
More »किसके सपने-- कृष्णप्रताप सिंह
अरसा पहले एक गीत में एक बच्चा अपनी मां से कहता था कि वह गोली चलाना सीखेगा, क्योंकि उसे लीडर नहीं, फौजी अफसर बनना है! कई बार इस गीत को युवा पीढ़ी के अराजनीतिकरण की ‘गर्हित' कोशिशों से भी जोड़ा जाता था। लेकिन अब कोई टॉपर फौजी अफसर बनने की इच्छा भी नहीं दर्शाता। अगर कभी उसके सपनों में समाज सेवा शामिल होती है तो वह एनजीओ है जिसमें बदले...
More »93 का स्टेथोस्कोप सिंहस्थ में खरीदा 7 हजार रुपए में
प्रमोद त्रिवेदी, इंदौर। डॉक्टर के गले में लटकने वाले यंत्र स्टेथोस्कोप मरीज की धड़कन सुनने के लिए उपयोग किया जाता है, लेकिन सिंहस्थ-2016 में इसका उपयोग करोड़ों स्र्पए के वारे-न्यारे करने में किया गया। सरकारी अस्पतालों में जहां इसे इसी साल 93 स्र्पए में खरीदा गया, वहीं सिंहस्थ के लिए 7 हजार स्र्पए चुकाए गए। यानी करीब 80 गुना महंगा। केवल स्टेथोस्कोप ही नहीं, स्वास्थ्य सुविधाओं के काम आने वाले तकरीबन...
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