हमारे राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम की सबसे बड़ी लड़ाई थी अगस्त क्रांति और इस आंदोलन की विशेषताएं इसे आजादी की लड़ाई के दूसरे तमाम आंदोलनों से अलग करती हैं। यहां मैं यह स्पष्ट कर दूं कि अन्य आंदोलनों से इसके अलग कहने का मतलब किसी आंदोलन के अच्छे-बुरे की बात नहीं है, बल्कि इसकी अहमियत को बताना मेरा मकसद है। जैसे दांडी यात्रा का अपना एक अलग चरित्र था। असहयोग आंदोलन...
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हार कर भी जीता आंदोलन -- योगेन्द्र यादव
अब नर्मदा बचाओ आंदोलन अपनी लड़ाई के अंतिम दौर में प्रवेश कर चुका है. उधर सरदार सरोवर डैम की अपनी प्रस्तावित ऊंचाई तक पहुंच जाने से कुछ लोगों के लिए एक स्वप्न सरीखी जबकि दूसरों के लिए एक भयावह परियोजना वास्तविकता में बदल गयी है. इस डैम के जल निकास द्वार बंद किये जा चुके हैं, नतीजतन इसके जलाशय में बढ़ता जलस्तर अब उन लोगों के घर-द्वार लील लेने को...
More »गेंद जैसे उछल रहे सोसाइटी से खरीदे चावल से बने लड्डू
बालोद। जिला मुख्यालय बालोद के ग्राम पीपरछेड़ी, पोण्डी, मटिया एवं चारवाही के ग्रामीणों के बीच राशन दुकान में मिलने वाले चावल में प्लास्टिक के चावल होने की आशंका से ग्रामिणों के बीच दहशत की स्थिति बनी हुई है। इसके चलते सरकारी दुकानों से राशन खरीदने में कतराने लगे हैं। ग्राम पोण्डी, लोण्डी, खैरवही, चारवाही, पीपरछेड़ी, निपानी, भेड़िया नवागांव, हीरापुर के ग्रामीणों ने बताया कि सोसाइटी से खरीदकर लाए गए चावल का...
More »कुपोषण के मोर्चे पर कहां पहुंचे हम- पढ़िए, नेशनल फैमिली हैल्थ सर्वे के तथ्य
भारत के हर सौ बच्चे में 42 बच्चे का वजन और 59 बच्चे का कद सामान्य से कम है- पांच साल पहले की हंगामा रिपोर्ट के इस तथ्य पर पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा कुपोषण राष्ट्रीय कलंक है ! सवाल है कि कुपोषण के राष्ट्रीय कलंक से मुक्त होने में देश को कितनी कामयाबी मिली है ? नेशनल फैमिली हैल्थ सर्वे(एनएफएचएस) के नये आंकड़े जवाब जानने में आपकी कुछ मदद कर सकते...
More »ओडीएफ घोषित पंचायतों का हाल : अब भी 25% लोग कर रहे खुले में शौच
पटना : पटना जिले की आबादी 2011 की जनसंख्या के मुताबिक 58 लाख 38 हजार 465 है, जिनमें से अाधी से अधिक आबादी अब भी खुले में शौच जाने को मजबूर है. कई लोगों के पास जमीन नहीं है, तो कई लोग आर्थिक रूप से शौचालय निर्माण करने में सक्षम नहीं हैं. सरकारी योजनाओं में शौचालय निर्माण की बात जोर-शोर से की जा रही है, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और...
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