‘18 अप्रैल के बिटिया के गवना के दिन धइले बाटीं, हर साल एक से डेढ़ एकड़ बोअत रहलीं, अबकी तीन एकड़ गन्ना बो देहलीं. सोचलीं कि बिटिया के गवनवा के खर्चा फसलिया बेच के निपटाई देब. फसल बढ़िया भईल तब सोचलीं भगवानों दुखिया के दर्द समझत बाटें, केहू से कर्जा नाहीं लेवेके पड़ी. जनवरी बीत गईल, गन्ना अबहीं खेतवे में खड़ा बा. 2014-15 के अबहीं 22 हजार रुपिया मिलवा से...
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राजनीतिक एजेंडे में पर्यावरण क्यों नहीं-- नवरोज के दुबाश
भारत में पर्यावरण की हालत काफी भयावह है। इससे जुड़े आंकडे़ परेशान करने वाले हैं। मसलन, देश की हर पांच में से तीन नदियां प्रदूषित हैं। ज्यादातर ठोस कचरों का निस्तारण नहीं किया जाता; यहां तक कि देश के समृद्ध हिस्सों में भी नहीं। मुंबई में 90 फीसदी, तो दिल्ली में 48 फीसदी कचरों का निस्तारण नहीं हो पाता। फिर, देश की तीन-चौथाई आबादी उन हिस्सों में बसती है, जहां...
More »क्या कोका-कोला भारत की सार्वजनिक स्वास्थ्य नीतियों को प्रभावित कर रहा है?
‘कोका-कोला कंपनी ने एक गैर-लाभकारी समूह के माध्यम से मोटापे पर चीन की सार्वजनिक स्वास्थ्य नीतियों को नजरअंदाज कर दिया है. यह गैर-लाभकारी समूह पोषण पर काम करने वाले वैज्ञानिकों के साथ मिलकर सरकार की नीति को कंपनी के कॉर्पोरेट हितों के पक्ष में प्रभावित करने का काम करती है.' ऐसा कहना है हार्वर्ड यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर सुज़न ग्रीनहाल्ग का और ये चौंकाने वाले तथ्य पिछले महीने ब्रिटिश मेडिकल जर्नल और...
More »किसानों की खुशहाली का कारगर रोडमैप- जयंतीलाल भंडारी
नये वर्ष 2019 की शुरुआत से ही देश की अर्थव्यवस्था के परि²दृश्य पर किसानों की कर्ज मुक्ति और विभिन्न उपहारों के लिए बड़े-बड़े प्रावधान दिखाई देने की संभावनाओं से कृषि और किसानों की खुशहाली दिखाई देगी। केन्द्र सरकार लघु एवं सीमांत किसानों की आय में कुछ बढ़ोतरी करने की नई योजना भी ला सकती है। तीन राज्यों में किसानों की कर्ज माफी के वचन से कांग्रेस के चुनाव जीतने के...
More »वैश्विक मंदी के संकेत देता अमेरिका- अजीत रानाडे
वर्ष 2018 का आगाज आर्थिक वृद्धि के लिए एक बड़े आशावाद के साथ हुआ. साल 2017 के समापन ने भी साल की वास्तविक वृद्धि को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के पूर्वानुमानों से आगे पहुंचा दिया था, जबकि इसके पहले के छह वर्षों के दौरान प्रत्येक वर्ष की शुरुआत में उसके द्वारा घोषित वार्षिक पूर्वानुमानों को लगातार नीचे लाने की जरूरत पड़ती रही, क्योंकि वास्तविक वृद्धि उन पर कभी खरी नहीं उतर...
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