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मासूमों के बचपन को बचाने के लिए-- सुभाष गाताडे

पिछले दिनों दिल्ली राज्य विधि सेवा प्राधिकरण ने न्यायालय को बताया कि महानगर की विभिन्न अदालतों में बच्चों से अत्याचार और उनके यौन शोषण के 4,000 से अधिक मामले लंबित पड़े हैं। उच्च न्यायालय में एक याचिका की सुनवाई के दौरान यह बात भी सामने आई कि वर्ष 2016 के शुरुआती सात महीनों में सिर्फ 449 मामलों का निपटारा हुआ और 83 लोगों पर दोष साबित हुए। याचिका डालने वाले ‘बचपन...

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सबको समय पर न्याय देने के लिए-- के सी त्यागी

विधि मंत्रालय ने जजों की संख्या के जो आंकड़े जारी किए हैं, वे चौंकाने वाले हैं। इसके अनुसार, देश में प्रति 10 लाख की आबादी पर न्यायाधीशों की संख्या मात्र 18 है, जबकि यह 50 होनी चाहिए। जजों की आनुपातिक संख्या में कमी कोई अचानक उत्पन्न हुई समस्या नहीं है। समय-समय पर सर्वोच्च न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश द्वारा सरकार का ध्यान इस ओर आकर्षित किया जाता रहा है, परंतु ठोस...

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अभियुक्तों की पैरवी नहीं, अदालत की मदद करेंगे न्यायमित्र

नई दिल्ली। निर्भया कांड के नाम से चर्चित वसंतकुंज सामूहिक दुष्कर्म कांड में फांसी की सजा पाए अभियुक्तों की आपत्ति पर सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि कोर्ट द्वारा नियुक्त न्यायमित्र हटेंगे नहीं। कोर्ट ने कहा है कि न्यायमित्र किसी अभियुक्त की पैरवी नहीं करेंगे बल्कि मामले की सुनवाई में कोर्ट की मदद करेंगे। ये आदेश न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने मामले में दोषी दो अभियुक्तों...

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अदालतों में तारीख पर तारीख, सौ साल से एक केस में दांव-पेंच

रायपुर (निप्र)। अदालतों में जजों की कमी और मामलों के निपटारे में देरी कोई नई बात नहीं है, लेकिन जमीन-जायदाद के छोटे-मोटे विवाद में सौ बरस में फैसला नहीं हो पाना बड़ी बात है। हालात यह हैं कि अदालतों में ऐसी-ऐसी कानूनी दांव-पेंच और उलझनें हैं कि पीढ़ी दर पीढ़ी मामले चल रहे हैं और नतीजे नहीं निकल पा रहे हैं। अदालत के तारीख पर तारीख के चक्कर में राजधानी...

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न्यायपालिका के सामने विश्वसनीयता का संकट : चीफ जस्टिस

इलाहाबाद : इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 150 वें स्थापना दिवस समारोह में सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायधीश ने कहा कि देश की न्यायिक व्यवस्था के सामने सबसे बड़ा सवाल विश्वसनीयता का है. बडी संख्या में लंबित मामलों के चिंता का विषय होने के बीच प्रधान न्यायाधीश टी एस ठाकुर ने साफ-साफ शब्दों में कहा कि कई मौकों पर मामलों के निस्तारण में बार का रवैया बहुत सहयोगात्मक नहीं रहता है...

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