हाल ही में, ‘ट्रेंडस् इन स्नेकबाइट मोर्टिलिटी इन इंडिया फ्रॉम 2000 टू 2019’ नामक एक शोध लेख प्रकाशित हुआ है, जोकि राष्ट्रीय स्तर पर, भारत में सांप के डसने मृत्यु दर के रुझानों से अवगत कराता है. शोध लेख के मुताबिक, जहरीले सांपों के डसने के कारण पिछले दो दशकों में 10 लाख से अधिक भारतीयों की मौत हुई है. ओपन एक्सेस जर्नल elifesciences.org में प्रकाशित इस शोध-आधारित अध्ययन में...
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‘आत्मनिर्भर भारत’: सरकार द्वारा जनता की जिम्मेदारियों से मुंह मोड़ने का बहाना?
-न्यूजलॉन्ड्री, कोरोना महामारी के लगातार बढ़ते प्रभाव के कारण एक ओर देश की सामाजिक आर्थिक एवं शैक्षिक स्थिति बद से बदतर बनती जा रही है तो दूसरी तरफ केंद्र सरकार ने आत्मनिर्भरता की घोषणा के द्वारा जनता के प्रति कई जवाबदेहियों से अपने को मुक्त कर लिया है जिसके चलते सभी क्षेत्रों में घोर निराशा का वातावरण छाया हुआ है. आर्थिक मोर्चे पर गरीबी रेखा के नीचे जीवनयापन करने वाले तथा...
More »बिहार: मशरूम की खेती किसानों को आत्मनिर्भर बनाने वाली महिला की कहानी
-बीबीसी, "मैं पिछले चार साल से यहां काम कर रहा हूँ. हर महीने आठ हज़ार रुपये मिलता है. लॉकडाउन के दौरान हम काम करते रहे और सैलरी मिली. लॉकडाउन में थोड़ी दिक्कत तो हुई ही. सभी को हुई. किसको नहीं हुई? सब परेशान हुए लेकिन मुझे कुछ खास दिक्कत नहीं हुई." यह कहना है 45 वर्षीय राजेश्वर पासवान का. राजेश्वर बिहार के वैशाली ज़िले के लालगंज गांव के रहने वाले हैं. इसी गांव...
More »कंद फसल आधारित एकीकृत कृषि प्रणाली छोटे अंडमान के आदिवासी किसानों की आय
-फसल क्रांति, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में रहने वाली जनजातियों में एक प्रमुख जनजाति निकोबारीज की आजीविका का मुख्य स्रोत वृक्षारोपण फसलों, मसलन नारियल और मछली पकड़ने पर आधारित है। उनकी खेती के तरीके अन्य कृषक समुदाय से बिल्कुल अलग और अद्वितीय हैं। लोग संयुक्त परिवार प्रणाली में रहते हैं और कंद और अन्य फसलों की खेती के लिए 'ट्यूहेट' बागान प्रणाली (एक संयुक्त परिवार कृषि प्रणाली जहाँ समुदाय के...
More »पंजाब: कोरोना से बचें तो भूख है, भूख से बचें तो पुलिस है और पुलिस से बचें तो प्रकृति है
-सत्याग्रह, कोरोना वायरस के बढ़ते खतरे के मद्देनजर पंजाब में अमरिंदर सिंह सरकार ने कर्फ्यू लगाया हुआ है. लोग-बाग अपने घरों में कैद हैं और जो बाहर निकल रहे हैं, उनकी अपनी-अपनी मजबूरियां हैं. कर्फ्यू के बीच बाहर निकलने वाले जायज लोगों को भी पुलिस की थुक्का-फजीहत बर्दाश्त करनी पड़ रही है. इस महामारी के दौर में भी यह बखूबी साबित हो रहा है कि ‘पुलिस (खासकर भारतीय) ‘पुलिस’ ही है...
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