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बेहतर है सब्जी का उत्पादन- एस एस सिंह

देश में सब्जियों की खेती 90.2 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में की जाती है, जिसमें कुल उत्पादन 16.21 करोड़ टन (162.18 मिलियन टन) होता है। देश में सब्जी की औसत उत्पादकता 17.36 टन प्रति हेक्टेयर है। सब्जियों के क्षेत्रफल में भारत की हिस्सेदारी विश्व में 12.16 प्रतिशत है, जबकि उत्पादन में 11 फीसदी। वैश्विक सब्जी उत्पादन में भारत का स्थान चीन के बाद दूसरा है। पिछले 15 वर्षों में राष्ट्रीय स्तर पर...

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खरगोन जिले से छिन सकता है मिर्च का 'लाल ताज'

विवेक वर्द्धन श्रीवास्तव, खरगोन। पिछले कुछ वर्षों से जिले की मिर्च जैसी उपज ने एशिया में अपनी खास जगह बनाई है। भारत में आंध्रप्रदेश के गुंटूर को उत्पादकता व गुणवत्ता में टक्कर देकर इस क्षेत्र ने अपना ध्यान खींचा। परंतु इस वर्ष मिर्च के क्षेत्र में उपलब्धि का 'लाल ताज' छिन सकता है। यहां फैले वायरस ने ना केवल फसलें बर्बाद कर दी बल्कि उत्पादकता पर भी प्रतिकूल प्रभाव डाला। किसान...

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विकास के मौजूदा मॉडल के विनाशकारी पहलू- सच्चिदानंद सिन्हा

आज जलवायु परिवर्तन पूरी दुनिया के लिए चिंता का विषय है. मौसम का चक्र बदल रहा है. कभी बिन मौसम भारी बरसात, तो कभी बारिश के मौसम में सूखा. कभी असमय भारी बर्फबारी, तो कभी धुंध. धरती गर्म हो रही है. ग्लेशियर पिघल रहे हैं. जलस्तर बढ़ने के कारण समुद्र से घिरे द्वीपीय इलाकों के डूबने का खतरा पैदा हो रहा है. इनके सबकी वजह है बढ़ता प्रदूषण और पर्यावरण का...

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भारत-पाक के बीच गोलीबारी में फंसा सुनैना का ‘ब्रह्नास्त्र’

मीनापुर (मुजफ्फरपुर): अगर भारत-पाकिस्तान सीमा पर गोलीबारी नहीं होती, तो मुजफ्फरपुर के घोसौत की पांचवीं पास सुनैना देवी 11 अक्तूबर को अपने जैविक ‘ब्रह्नास्त्र' के बारे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बता चुकी होतीं. सुनैना के ‘ब्रह्नास्त्र' से देश के दुश्मन नहीं, बल्कि खेतों के दुश्मन खर-पतवार व कीट-पतंगे मरते हैं. इसी के बारे में जानने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें पीएमओ बुलाया था. सुनैना दिल्ली जाने के...

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जनसंख्या के बढ़ते बोझ को भोजन उपलब्ध कराने ऊपरी व शुष्क भूमि की उपयोगिता बढ़ाना है जरूरी

वैज्ञानिकों में भ्रम है कि हम उन्नत तकनीक की बात कर रहे हैं, तो पूर्व की परिस्थिति में ही सिर्फ निचली व मध्यम भूमि की उपयोगिता से काम चल जायेगा. लेकिन नयी परिस्थितियों में ऊपरी भूमि का उपयोग बढ़ाना जरूरी है. वहां ऐसी फसलें लगाने की जरूरत है जो कम पानी में और जल्दी तैयार हो जायें. जैसे मकई, मडुवा व 100 दिनों में तैयार होने वाला धान. मध्यम व निचली...

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