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पितृसत्ता का हिंसात्मक उत्सव--- राजू पांडेय

जब महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने पिछले साल बयान दिया था कि बलात्कार के मामलों में भारत उन चार देशों में सम्मिलित है, जहां सबसे कम बलात्कार होते हैं, तो उनकी बड़ी आलोचना हुई थी। हालांकि मेनका गांधी का कथन अंशत: सही था। प्रति एक लाख जनसंख्या पर होने वाले बलात्कार के प्रकरणों की दर की बात करें तो भारत में इसकी दर 2.6 है। उनतीस अन्य...

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नक्सली दहशत : गांव है पर रह नहीं सकते, खेत है पर बो नहीं सकते

राजेश शुक्ला, कांकेर। गांव है, पर रह नहीं पाते। खेत है, पर जोताई नहीं कर पाते। रिश्तेदार हैं, पर उनके साथ रहकर दुख-सुख नहीं बांट पाते। यह हाल है अनिल, चंद्रूराम, रामप्रसाद, बंसीलाल जैसे सैकड़ों किसानों का, जो नक्सली दहशत के चलते अपना गांव, घर-द्वार छोड़कर कई साल से दूसरे गांव में बसे हुए हैं। इनका इससे भी बड़ा दर्द यह है कि आज जब छत्तीसगढ़ सरकार धान बोनस बांट रही...

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हमें और मंदसौर नहीं चाहिए-- शशिशेखर

दसौर की घटना पर आंसू बहाने वाले दिल कड़ा कर लें, क्योंकि असंतोष की चिनगारियां देश के कई हिस्सों में छिटक रही हैं। कारण? गांवों और कस्बों में रहने वाली देश की बड़ी आबादी के लिए ताकतवर भारतीय राष्ट्र-राज्य अब भी दूर की कौड़ी है। क्या हमें इस बात पर शर्म नहीं आनी चाहिए कि कृषि-प्रधान कहलाने वाले देश की कोई कारगर ‘राष्ट्रीय कृषि नीति' नहीं है? 1947 से अब...

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भूख में तनी हुई मुट्ठी का नाम...-- रविभूषण

धूमिल (9 नवंबर 1936-10 फरवरी 1975) ने लिखा था, 'भूख से रियाती हुई फैली हथेली का नाम दया है, और भूख में तनी मुट्ठी का नाम नक्सलबाड़ी है' (नक्सलबाड़ी कविता, संसद से सड़क तक, 1972 में संकलित). बाद में नागार्जुन ने अपनी एक कविता में यह सवाल किया, 'भुक्खड़ के हाथों में यह बंदूक कहां से आई?' भारतीय राजनीति पर फरवरी 1967 के लोकसभा चुनाव का रैडिकल प्रभाव पड़ा. पश्चिम...

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युवा हरदम रहा है आजादखयाल - मृणाल पांडे

कहना कठिन है कि जेएनयू के कमउम्र छात्रों तथा परिसर की गोष्ठियों में कुछ प्रत्याशित सी बहसों तथा अचानक आए अनजान लोगों की उकसाऊ नारेबाजी से सरकार ने एकदम उखड़कर शिक्षकों सहित उस परिसर को लगभग अपना भीषण दुश्मन क्यों मान लिया होगा? इस बात के तूल पकड़ने पर बेवजह उसने देश भर के अकादमिक जगत तथा मीडिया के बडे हिस्से से बेवजह दुश्मनी साध ली, पर अब लगता है...

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