भारतीय राजनीति में विपक्ष लगातार कमजोर होता जा रहा है। इसे हमें राजनीतिक दलों और उनके नेतृत्व के हिसाब से ही नहीं, इन दलों के सामाजिक आधार के हिसाब से भी देखना होगा। विपक्ष में रहने की आदत और चाहत समाज के आगे बढ़े हुए तबकों में तो कमजोर हुई ही है, गरीबों और पिछड़ों आदि को भी लगातार विपक्ष में बने रहना उनके अस्तित्व के लिए मुश्किल लगता है।...
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पीएम नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एनडीए देश के सबसे गरीब जिलों में भी जीता
नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाले एनडीए ने देश के सबसे गरीब जिलों में भी जीत हासिल की है। एक विश्लेषण में यह बात सामने आई। विश्लेषण में मध्य प्रदेश, बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे प्रमुख राज्यों से हमने 30 फीसदी या उससे अधिक गरीब घरों वाले जिलों को संसदीय सीट के आधार पर चुना। यूपी में भाजपा ने 10 सबसे गरीब जिलों में पड़ने वाली संसदीय सीटों पर बड़े अंतर...
More »बिहार में सबसे अधिक मतदाताओं ने दबाया नोटा का बटन, राजस्थान में 3.27 लाख लोगों ने चुना नोटा
नई दिल्लीः लोकसभा चुनाव में देश में सबसे ज्यादा बिहार की जनता ने नोटा का बटन दबाकर अपने उम्मीदवारों को खारिज किया. बिहार के 8.17 लाख मतदाताओं ने नोटा का इस्तेमाल किया. इसी तरह राजस्थान में 3.27 लाख मतदाताओं ने नोटा (इनमें से कोई नहीं) का विकल्प चुना. यह राज्य की 25 लोकसभा सीटों में डाले गए कुल मतों के 1.01 प्रतिशत के बराबर है. राजस्थान में नोटा में डाले गए मत...
More »भद्रलोक की हिंसा का मनोविज्ञान-- हरिराम पांडेय
पश्चिम बंगाल में व्यापक चुनार्वी ंहसा न तो कोई नई बात है और न ही यह कोई अजूबा। बंगाल का भद्रलोक समाज राजनीतिक हिंसा को एक रूमानी रूप देता रहा है। यहां हर दौर में सिर्फ झंडे बदल जाते हैं, जबकि डंडे और उनके काम उसी तरह रहते हैं। कुछ लोग इसे इतिहास से भी जोड़कर देखते हैं। जंगे आजादी के बाद में जब भारत का बंटवारा हुआ, तो जो...
More »मुद्दों से ज्यादा प्रचार पर भरोसा-- संजय कुमार
चुनाव अभियानों का रूप-रंग हाल के वर्षों में काफी बदल चुका है। हालांकि किसी प्रत्याशी को अब अपने प्रचार के लिए निर्वाचन आयोग दो सप्ताह का ही वक्त देता है, जबकि पहले 21 दिन का समय मिलता था, लेकिन व्यावहारिक तौर पर अब चुनाव अभियान अतीत की तुलना में कहीं अधिक व्यापक हो गया है। मौजूदा लोकसभा चुनाव के लिए भी आधिकारिक तौर पर चुनाव अभियान की शुरुआत पहले चरण...
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