जनसत्ता 26 जून, 2013: उत्तराखंड में आई भारी विपदा पर लिखने बैठा, तो एकाएक बाबा नागार्जुन याद आ गए, अपनी एक कविता के जरिए- ताड़ का तिल है/ तिल का ताड़ है/ पब्लिक की पीठ पर बजट का पहाड़ है/ किसकी है जनवरी/ किसका अगस्त है/ कौन यहां सुखी है/ कौन यहां मस्त है/ सेठ ही सुखी है। सेठ ही मस्त है/ मंत्री ही सुखी है/ मंत्री ही मस्त है/...
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विस्थापन के जरिये विकास नहीं चाहिए- रोमा
आखिरकार प्रस्तावित भूमि अधिग्रहण कानून को संसद के इस मानसून सत्र में भी टालना ही पड़ा। विवादों में घिरे होने की वजह से सरकार द्वारा इसे मंत्री समूह को सौंप दिया गया है। चूंकि अभी केंद्र सरकार अपने दामन पर लगी कालिख पोंछने में लगी है, इसलिए यह खबर सुर्खियों में नहीं है। इसी विवादास्पद कानून के खिलाफ पिछले महीने ‘संघर्ष’ के बैनर तले हजारों लोगों ने जंतर-मंतर पर धरना...
More »पर्यावरण भी हो विकास का मानक- अनिल पी जोशी
हमने विकास का सबसे बड़ा मापदंड सकल घरेलू उत्पाद की दर को माना है। किसी भी देश की प्रगति उसकी जीडीपी के आधार पर तय की जाती है। इसमें उद्योग, सुविधाएं, रियल इस्टेट बिजनेस, सेवाएं आदि मुख्य रूप से आते हैं। सही मायने में खेती को ही जीडीपी या उत्पादन की श्रेणी में आना चाहिए, क्योंकि अन्य उत्पाद हमारी सुविधाओं से जुड़े हैं, न कि आवश्यकताओं से। विकास की मौजूदा अवधारणा...
More »क्यों बढ़ रहा है जल-संकट? -- बाबा मायाराम
पिछले कुछ सालों में मध्यप्रदेष समेत देष भर में पानी का संकट बढ़ा है। यह समस्या प्रकृति से ज्यादा मानव-निर्मित है। वर्षा की कमी के साथ, वनों की अवैध कटाई, पुराने तालाबों पर अतिक्रमण, गाद भरने से सरोवरों की भंडारण क्षमता में कमी, पानी की फिजूलखर्ची, नदी, जलाषयों का पानी औद्योगिक इकाईयों को देने व षहरों के प्रदूषित पानी को नदियों के प्रदूषण और भूजल को बेतहाषा दोहन से समस्या...
More »जंगलों में 10 करोड़ की वन संपदा खतरे में
शिमला. प्रदेश के जंगलों में पाए जाने वाली 10 करोड़ की वन संपदा खतरे की जद में है। वन विभाग ने वनौषधियों की कुल पाए जाने वाली 57 प्रजातियों में से 47 को लुप्त प्राय घोषित कर दिया है। ऐसे में इन प्रजातियों को बचाने के लिए इस साल से संरक्षण मुहिम शुरू की जा रही है जिसका मकसद लोगों को रोजगार देना तो होगा ही साथ में औषधियों के...
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