नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट के जज एके सीकरी का कहना है कि आज के युग में न्यायिक प्रक्रिया दबाव में है, जज तनाव और दबाव में फैसले लिख रहे हैं. किसी मामले पर सुनवाई शुरू होने से पहले ही लोग बहस करने लग जाते हैं कि इसका फैसला क्या आना चाहिए. इसका जजों पर प्रभाव पड़ता है. सीकरी ने ‘लॉएशिया' के सम्मेलन में ‘डिजिटल युग में प्रेस की स्वतंत्रता' विषय पर...
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आनंद तेलतुम्बड़े के समर्थन में आए 600 विदेशी शिक्षाविद
नई दिल्लीः सामाजिक कार्यकर्ता और शिक्षाविद आनंद तेलतुम्बड़े के समर्थन में अमेरिका और यूरोप के 600 से अधिक शिक्षाविदों ने एक संयुक्त बयान जारी किया है, जिसमें भारत और महाराष्ट्र सरकार से तेलतुम्बड़े के खिलाफ कानूनी कार्रवाइयों को तुरंत बंद करने का आग्रह किया गया है. प्रिंस्टन, हार्वर्ड, कोलंबिया, येल, स्टैनफोर्ड, बर्कले, यूसीएलए, शिकागो, पेन, कॉर्नेल, एमआईटी, ऑक्सफोर्ड और लंदन स्कूल ऑफ कॉमर्स सहित उत्तरी अमेरिका, यूरोप के कई प्रमुख विश्वविद्यालयों...
More »ग़ैरक़ानूनी गिरफ़्तारी से क़ानूनी गिरफ़्तारी के बीच प्रो. आनंद तेलतुम्बड़े
जैसा कि हम जानते हैं, पुणे की स्थानीय अदालत द्वारा प्रोफेसर आनंद तेलतुम्बड़े की अग्रिम ज़मानत की अर्ज़ी को ख़ारिज किये जाने के बाद बीते दो फरवरी की सुबह 3:30 बजे उन्हें मुंबई एअरपोर्ट से गिरफ्तार कर लिया गया था जिसे अदालत ने ग़ैरक़ानूनी क़रार दिया और दोपहर बाद वे छोड़ दिए गए. पुणे पुलिस की यह जल्दबाज़ी हैरान करने वाली थी क्योंकि प्रो. तेलतुम्बड़े को सर्वोच्च न्यायालय ने ज़मानत लेने...
More »समाज को हिंसक होने से रोकिए-- कुमार प्रशांत
मुझे यह जानने में कोई दिलचस्पी नहीं है कि अलीगढ़ में अखिल भारत हिंदू महासभा के जिन लोगों ने 30 जनवरी, 2019 को महात्मा गांधी को ‘सामने खड़ा करके░' फिर से गोली मारने का कुत्सित खेल खेला, वे कौन थे, उनकी गिरफ्तारी हुई या नहीं अौर गिरफ्तारी नहीं हुई, तो क्यों नहीं हुई? कोई मुझसे पूछे, तो मैं बार-बार यह कहने को तैयार हूं कि न तो उनकी गिरफ्तारी होनी...
More »खुद की अदालत में मीडिया-- मृणाल पांडे
हमारे साहित्य या मीडिया में खुद अपने भीतरी जीवन की सच्चाई जिक्री तौर से ज्यादा, फिक्री तौर से कम आती है. मसलन दर्शक-पाठक भली तरह जान चुके हैं कि मीडिया के भीतर कैसी मानवीय व्यवस्थाएं हैं, खबरें कैसे जमा या ब्रेक होती हैं. पत्रकारों के बीच एक्सक्लूसिव खबर देने के लिए कैसी तगड़ी स्पर्धा होती है. लेकिन, पिछले दो दशकों में उपन्यासों, कहानियों या मीडिया पर लिखे जानेवाले काॅलमों में...
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