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भारत के लिए एक बड़ा खतरा बनता जा रहा है लैंटाना

डाउन टू अर्थ, 26 फरवरी यह किसी भी प्रजाति के लिए आसान नहीं है कि वह उन मूल प्रजातियों से बेहतर प्रदर्शन करे जो पहले से ही स्थानीय परिवेश के अनुकूल हों। लेकिन, सजावटी झाड़ी लैंटाना (लैंटाना कैमारा) ने आक्रामक फैलाव की कला में महारत हासिल कर ली है और अपने कौशल को लगातार निखार भी रही है। लैंटाना पहली बार 1800 के दशक की शुरुआत में लैटिन अमेरिका से भारत आई...

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मौसम की मार से फसल बर्बाद होने के बावजूद मुआवजे से वंचित भूमिहीन किसान

मोंगाबे हिंदी, 24 फरवरी उत्तर प्रदेश में सीतापुर जिले के तुरकौली गांव में रहने वाले 64 वर्षीय किसान राम सागर की अक्टूबर 2022 में भारी और बेमौसम बारिश के कारण साढ़े तीन एकड़ धान की फसल बर्बाद हो गई थी। इसी गांव में रहने वाले 42 साल के जाबिर अली का हाल भी कुछ ऐसा ही था। उनके एक एकड़ जमीन पर लगा धान बारिश की वजह से पूरी तरह खराब...

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तीन दिन से क्यों पैदल चल रहे हैं आदिवासी, क्या हैं उनकी मांगें?

डाउन टू अर्थ, 24 फरवरी छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले में 39 से अधिक गांवों के आदिवासियों ने तीन दिवसीय पदयात्रा शुरू की है। आदिवासियों की मांग है कि विकास के नाम पर उनकी जमीनों को सरकार ने हथिया लिया, लेकिन अब तक न तो पुनर्वास किया गया और न ही उचित मुआवजा दिया गया है। साथ ही, उन्हें उनकी जमीनों पर बनी खदानों व पावर प्लांटों से निकलने वाला प्रदूषण भी झेलना...

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ग्रामीण क्षेत्र के लिए कितना हितकारी है 2023-24 का बजट?

रूरल वॉइस, 24 फरवरी पिछले साल 2022-23 के लिए जब बजट पेश किया गया तो मैंने उसे जातिगत भेदभाव वाला बताया था। अगले वित्त वर्ष के लिए जो बजट पेश किया गया है, उसके प्रस्तावों पर गौर करें तो इसमें भी जातिगत भेदभाव झलकता है। तमाम मीडिया में नई स्कीम की घोषणाओं और पूंजी निर्माण के लिए अधिक आवंटन को ‘अमृत काल’ जैसे लुभावन शब्दों के रूप में पेश किया गया।...

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भगवान ने हमको छप्पर फाड़कर दुख दिया है

पारी , 23 फरवरी  बसंत बिंद कुछ दिनों के लिए घर आए थे. वह जहानाबाद ज़िले के सलेमांपुर गांव से कुछ घंटों की दूरी पर स्थित पटना में बीते कुछ महीनों से खेतिहर मज़दूरी कर रहे थे. संक्रांति का त्योहार निपट जाने के बाद, अगले दिन, यानी 15 जनवरी को वह काम पर लौटने वाले थे और बगल के गांव चंधरिया से कुछ मज़दूरों को बुलाने के लिए गए थे. इन मज़दूरों...

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