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चावल निर्यातकों का ईरान में अटका 1,600 करोड़ रुपये, निर्यात में आई कमी

भारतीय बासमती चावल के निर्यातकों का ईरान में 1,600 करोड़ रुपये से ज्यादा अटका हुआ है, जिस कारण नए निर्यात सौदे भी सीमित मात्रा में ही हो रहे हैं। चालू वित्त वर्ष 2019-20 के पहले आठ महीनों अप्रैेल से नवंबर के दौरान बासमती चावल का निर्यात 5.13 फीसदी घटकर 23.63 लाख टन का ही हुआ है जबकि गैर-बासमती चावल के निर्यात में इस दौरान 37.77 फीसदी की भारी गिरावट आकर...

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अरहर किसानों को नहीं मिल रहा समर्थन मूल्य, दालों का आयात 47 फीसदी बढ़ा

आयात सस्ता होने के कारण किसानों को मंडियों में अरहर न्यूनतम समर्थन मूल्य  (एमएसपी) से 6,00 से 750 रुपये प्रति क्विंटल नीचे दाम पर बेचनी पड़ रही है जबकि चालू वित्त वर्ष 2019-20 के पहले आठ महीनों अप्रैल से नवंबर के दौरान दालों का आयात 47.12 फीसदी बढ़कर 22.51 लाख टन हो गया है। दलहन कारोबारी एस चंद्रशेखर नादर ने बताया कि सोमवार को गुलबर्गा मंडी में अरहर 5,050 से 5,200...

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NRC को पूंजीवादी दृष्टि से भी देखा जाना चाहिए

एनआरसी को अभी तक सिर्फ़ कम्युनल और संवैधानिक दृष्टि से ही देखा गया है। एनआरसी पूंजीवादी के कितना काम आ सकता है, किस तरह काम आ सकता है इस पर भी एक नज़र डाल लेना चाहिए। क्योकि पूंजीवादी जब फासीवाद को अपना हथियार बना लेता है तो दमन और क्रूरता के सारे पुराने मापदंड टूट जाते हैं।इसे समझना हो तोलोकल इंटेलिंजेंस यूनिट के हवाले से लिखी गई अमर उजाला की...

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आप्रवासियों और शरणार्थियों की संख्या को लेकर फैलाए गए भ्रमों और तथ्यहीन कुतर्कों को खारिज करते आंकड़ें

विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय और राष्ट्रीय स्रोतों के आंकड़ें आप्रवासियों और शरणार्थियों की संख्या को लेकर फैलाए गए भ्रमों और तथ्यहीन कुतर्कों को खारिज करते हैं.   अनेकों मीडिया रिपोर्टें यह खुलासा करती हैं कि राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (NRIC), जिसे देशभर में लागू किए जाने की उम्मीद है, के लिए देश के विभिन्न हिस्सों में डिटेनशन सेंटर बनाए जा रहे हैं. हालांकि मीडिया के सामने सरकार एनआरसी और राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर के बीच किसी भी प्रकार के संबंध से इनकार कर रही है,...

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दशक पर एक नजर: कृषि संकट के लिए किया जाएगा याद

2010 में जब भारत ने सदी के दूसरे दशक में प्रवेश किया था, तब उसके सामने 2008 में शुरू हुई वैश्विक आर्थिक मंदी की बड़ी चुनौती थी। लेकिन उपभोग वस्तुओं की मांग लगातार बने रहने के कारण इस मंदी का असर भारत पर नहीं पड़ा। खासकर ग्रामीणों ने इस दौरान अपने खर्च में कमी नहीं की और वे लगातार अपनी जरूरत की चीजें खरीदते रहे, जबकि वे लगभग पूरी तरह...

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