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गर्म हवाओं के खतरे से अब तो चेत जाएं - मिहिर आर. भट्ट

दुनिया के इतिहास में यह पांचवीं सबसे जानलेवा लू है, जिसका सामना हम इन दिनों कर रहे हैं। 2200 से ज्यादा लोगों की अब तक यह जान ले चुकी है। क्या हमें और मौतों का इंतजार है, जिसके बाद ही हम लू के खतरे का सामना करने के लिए कोई राष्ट्रीय नीति बनाएंगे? ध्यान रहे कि पिछले कुछ दिनों में गर्म हवा के थपेड़ों से जितने लोगों की मौतें हुई...

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सीएमएस एन्वायर्नमेन्टल जर्नलिज्म अवार्ड के लिए प्रविष्टियां आमंत्रित

प्रिन्ट, ब्राडकॉस्ट तथा ऑनलाइन मीडिया से जुड़े पत्रकार बंधुओं से सीएमएस वातावरण यंग एन्वायर्नमेन्टल जर्नलिज्म अवार्ड के लिए प्रविष्टियां आमंत्रित हैं। प्रविष्टियों को भेजने की अंतिम तारीख 31 जुलाई 2015 है।   सीएमएस वातावरण यंग एन्वायर्नमेन्टल जर्नलिज्म अवार्ड का लक्ष्य देश के 21-35 आयु वर्ग के युवा पत्रकारों द्वारा पर्यावरण से संबंधित पत्रकारिता के क्षेत्र में किए जा रहे उत्कृष्ट योगदान को रेखांकित और पुरस्कृत करना है।     इस अवार्ड के माध्यम से प्रिन्ट,...

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गुजरात मॉडल का राष्ट्रीय हो जाना- रामचंद्र गुहा

पिछले आम चुनाव के प्रचार में नरेंद्र मोदी ने बार-बार ‘गुजरात मॉडल' का जिक्र किया और वादा किया कि भाजपा सत्ता में आई, तो यह मॉडल राष्ट्रीय स्तर पर लागू किया जाएगा। पार्टी चुनाव जीत गई और मोदी ने अपना वादा निभाया। गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए नरेंद्र मोदी ने प्रशासनिक चुस्ती और व्यापार करने की आसानी बढ़ाने के लिए कई काम किए। जब वह प्रधानमंत्री बन गए, तब भी उन्होंने...

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मौत आती है पर नहीं आती - अनुराग चतुर्वेदी

'मरते हैं आरजू में मरने की/मौत आती है पर नहीं आती।" 7 मार्च 2011 को अरुणा रामचंद्र शानबाग बनाम यूनियन ऑफ इंडिया और अन्य के मुकदमे का फैसला सुनाते हुए न्यायमूर्ति मार्कंडेय काटजू ने मिर्जा गालिब के इस शे"र को याद किया था। सोमवार को जब अरुणा ने आखिरी सांस ली, तब काटजू ने एक बार फिर यह शे"र दोहराया। इस दर्दनाक कहानी की शुरुआत 26 नवंबर 1973 को होती...

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पहचान छिपाने की मजबूरी देता समाज

छुआछूत को कानूनी तौर पर खत्म किए जाने के 65 साल बाद भी देश का चौथा नागरिक किसी-न-किसी रूप में इसके अनुभवों से गुजर चुका है। एक अखिल भारतीय सर्वेक्षण में यह बात सामने आई है। यह सर्वे राष्ट्रीय व्यावहारिक आर्थिक अनुसंधान परिषद और मैरीलैंड यूनिवर्सिटी, अमेरिका ने किया है। इसमें महत्वपूर्ण बात यह है कि छुआछूत विरोधी तमाम कड़े कानून बनने के बाद हम उससे मुक्त नहीं हो पाए...

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