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पूंजीवाद का प्रपंच- सिद्धार्थ वरदराजन

नरेंद्र मोदी आखिर किसका प्रतिनिधित्व करते हैं, और भारतीय राजनीति में उनके उदय के क्या मायने हैं? 2002 के मुस्लिम विरोधी दंगों का बोझ अब भी उनके कंधों पर है। ऐसे में, सांप्रदायिक राजनीति के ऐतिहासिक उभार के तौर पर गुजरात के मुख्यमंत्री का राष्‍ट्रीय पटल पर उदय होते देखना खासा दिलचस्प रहेगा। संघ परिवार के वफादार और हिंदू मध्य वर्ग का एक बड़ा हिस्सा आज अगर उनका भक्त बना है,...

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जनकल्याण में कटौती का अर्थ- धर्मेन्द्रपाल सिंह

जनसत्ता 01 मार्च, 2014 : आम चुनाव सिर पर हों तो इसे अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारना ही कहा जाएगा। वित्तमंत्री पी चिदंबरम ने अंतरिम बजट में जन-कल्याणकारी योजनाओं में 31,812 करोड़ रुपए की कटौती कर यूपीए सरकार के विरोधियों को हमला करने के लिए अतिरिक्त गोला-बारूद मुहैया करा दिया है। कटौती चालू वित्तवर्ष में की गई है जिसका असर ग्रामीण सड़क, सिंचाई, राष्ट्रीय कृषि विकास, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन, मिड-डे...

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सबसे ज्यादा अनपढ़ लोगों का देश- श्योराज सिंह बेचैन

यह दुखद सच्चाई पिछले दिनों एक सर्वेक्षण के जरिये सामने आई कि भारत अनपढ़ वयस्कों की सर्वाधिक आबादी वाला देश है। आंकड़ा बताता है कि अनपढ़ों की यह जनसंख्या उन्तीस करोड़ को छूने जा रही है। इससे अधिक चिंता का विषय और क्या होगा कि पूरी दुनिया की अनपढ़ आबादी का 37 फीसदी हिस्सा उस भारत में है, जो अपने आप को विश्व गुरु मानता रहा है, और जिस देश के...

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विषमता का विकास- सुषमा वर्मा

जनसत्ता 17 फरवरी, 2014 : विश्व बैंक की प्रबंध निदेशक क्रिस्टीना लेगार्ड ने हाल ही में यह रहस्योद्घाटन  किया कि भारत के अरबपतियों की दौलत पिछले पंद्रह बरस में बढ़ कर बारह गुना हो गई है। क्रिस्टीना के अनुसार, इन मुट्ठी भर अमीरों के पास इतना पैसा है जिससे पूरे देश की गरीबी को एक नहीं, दो बार मिटाया जा सकता है। लेगार्ड के इस बयान से पुष्टि होती है...

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संविधान ने दी गांव के आम लोगों को बड़ी ताकत

देश में हाल के दिनों में गणतंत्र दिवस को लेकर लोगों के मन में एक अलग तरह का दुराव पैदा हो गया है. लोगों को लगता है कि गणतंत्र दिवस मनाना बेकार बात है, झंडा फहराने और परेड करने से क्या फर्क पड़ता है. मगर पिछले दिनों एक दलित महिला विचारक ने कहा कि देश के सभी वंचितों को गणतंत्र दिवस जरूर मनाना चाहिये, क्योंकि इस देश के लोगों को आजादी...

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