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जहर खा रहा हर भारतीय!

वर्ष 1966-67 में समूचे देश में सूखे की स्थिति व्याप्त हो गयी थी. उस समय देश की 48 करोड़ आबादी को खिलाने के लिए हमारे पास समुचित खाद्यान्न उपलब्ध नहीं था. ऐसी स्थिति में विदेशों से खाद्यात्र मंगाने की मजबूरी बन रही थी. यह परंपरा अधिक दिनों तक किसी भी स्थिति में चलनेवाली नहीं थी. इसलिए खाद्यान्नों के मामले में आत्मनिर्भर बनने के लिए उसके उत्पादन में वृद्धि करना अनिवार्य आवश्यकता बन...

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नई अनाज किस्मों के लिए अंतरराष्ट्रीय पहल

भारत, अमेरिका व ऑस्ट्रेलिया ने एग्री रिसर्च के लिए हाथ मिलाया नई चुनौतियां जलवायु परिवर्तन के बावजूद 60 फीसदी उत्पादन बढ़ाना होगा सूखे व ज्यादा लवणता में भी उगने वाली गेहूं, चावल की किस्में चाहिए भारत व ऑस्ट्रेलिया के अनुसंधान के लिए मदद देगा यूएस एड किसानों को प्रतिरोधी क्षमता वाली किस्में सुलभ कराई जाएंगी बदलती जलवायु में उपयोगी गेहूं व चावल की नई किस्में विकसित करने के लिए भारत, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया ने समझौता किया...

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कितना कम जानते हैं हमारे सांसद

समाज के विभिन्न तबकों के लिए भोजन के अधिकार को लेकर काम कर रहे हम जैसे पंद्रह युवाओं का एक समूह पिछले हफ्ते कुछ सांसदों से मिला। इसकी वजह थी, संशोधित राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा विधेयक पर उनसे चर्चा करना और इसे बेहतर बनाने का प्रयास करना। हमने तकरीबन सौ से अधिक सांसदों का दरवाजा खटखटाया, लेकिन उनमें से महज 20 सांसदों से ही मुलाकात हो सकी। कई सांसद अपने निर्वाचन क्षेत्रों...

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खाद्यान्न निर्यात में तेजी लाने के लिए केंद्र सरकार गंभीर- आर एस राणा

पहल - मौजूदा स्थिति पर समीक्षा के लिए दो मई को सचिव स्तरीय बैठक समीक्षा के बिंदु गेहूं व गैर-बासमती चावल के घरेलू स्टॉक पर विचार होगा खाद्यान्न के मौजूदा निर्यात की स्थिति आकी जाएगी अगले महीनों में वैश्विक सप्लाई की भी होगी समीक्षा अंतरराष्ट्रीय बाजार में संभावित मूल्य स्तर पर तय होगी नीति आगामी महीनों में विश्व बाजार के संभावित परिदृश्य पर ही तय होगी निर्यात नीति देश में गेहूं व चावल की अच्छी पैदावार और...

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सुधारों की दिशा और आम आदमी( पू्र्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के जन्मदिवस पर प्रभात खबर की विशेष प्र?

भारत में आर्थिक सुधारों को लागू किये जाने के 22 वर्ष बाद भी इस पर मंथन का दौर जारी है. पिछले दो दशकों के अनुभव हमें बता रहे हैं कि आर्थिक उदारीकरण के पैरोकारों ने जिस स्वर्णिम भविष्य का हमसे वादा किया था, वह सच्चाई से दूर, छल से भरा हुआ और भ्रामक था. इन वर्षों में आर्थिक उदारीकरण विकास के चमचमाते आंकड़ों पर सवार होकर हम तक जरूर आया,...

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