भारत में जब से आर्थिक उदारीकरण आया है, एक अद्भुत विरोधाभास उदारवादियों में देखने को मिला है। जहां भारत में कई जगह अभ्युदय हो रहा है। वहीं हालात 20 साल से ज्यादा खराब होते गए हैं। खासकर लोगों की खुराक कम हुई है। सिर्फ जिंदा रहने के लिए लोग इस देश में भोजन ग्रहण कर रहे हैं और इसका मूल कारण जनसंख्या का बढ़ना नहीं है, जैसा कि अनुमान लगाया...
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चीनी की खपत 15 लाख टन बढ़ी
चीनी के बढ़ते मूल्य को सिर्फ उत्पादन में कमी से ही बढ़ावा नहीं मिल रहा है। कीमतों में भारी बढ़ोतरी के बावजूद इस वर्ष चीनी की देशव्यापी खपत में 15 लाख टन की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक विश्व के सबसे बड़े चीनी उपभोक्ता देश भारत की चीनी खपत मार्केटिंग वर्ष 2008-09 में 233 लाख टन रहने का अनुमान है, जबकि गत वर्ष चीनी की खपत...
More »बेशुमार जुगनुओं की जरूरत
दुनिया वित्तीय संकट के भंवर में फंसी है. मगर भारत की हालत फिर भी कई अर्थव्यवस्थाओं से बेहतर है. क्या है इसकी वजह? कैसा हो आगे का रास्ता? अरूण मायरा का आलेख नियाभर में फैल चुका आर्थिक संकट अमेरिका में घर बनाने के लिए दिए गए बेहिसाब कर्ज के डूबने से शुरू हुआ. वहां के वित्तीय संस्थानों ने अपना व्यापार बढ़ाने के लिए पहले तो बिना सोचे-समझे कर्ज दिया. इसके बाद...
More »शिक्षा का अधिकार विधेयक-देर आये- कम लाये?
कहा जा रहा है कि शिक्षा का अधिकार विधेयक ने एक इतिहास रचा है लेकिन क्या सचमुच ऐसा है। पक्ष और विपक्ष में ढेर सारी दलीलें हैं लेकिन यह कहना कोई अतिशयोक्ति नहीं कि इस विधेयक ने देश के शिक्षाविदों और नागरिक-संगठनों का कार्यकर्ताओं दोनों को समान रुप से निराश किया है। लोकसभा में अनिवार्य और मुफ्त शिक्षा का प्रावधान करने वाला जो विधेयक पास हुआ वह एक तरह से...
More »भुखमरी-एक आकलन
खास बात - साल 1990 में भारत का जीएचआई अंक 32.6 था, साल 1995 में यह अंक 27.1, साल 2000 में 24.8, साल 2005 में 24.0 तथा साल 2013 में 21.3 था। साल 2013 में भारत का जीएचआई अंक(21.3) चीन (5.5), श्रीलंका (15.6), नेपाल (17.3), पाकिस्तान (19.3) और बांग्लादेश (19.4) से बदतर है।@ -साल १९८३ में देश के ग्रामीण अंचलों में प्रति व्यक्ति प्रति दिन औसत कैलोरी उपभोग २३०९ किलो कैलोरी का था जो साल १९९८ में घटकर २०१०...
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