दो बजते ही स्कूल से छूटे ढेर सारे बच्चों की खिली हुई आवाज से मन ऐसे प्रसन्न हो उठता है जैसे शाम को घर लौटती चिड़िया का चहकते, शोर करते झुंड को देखना। मैं घर के एकदम पास स्थित सरकारी स्कूल की बात कर रहा हूं। चिल्ला गांव का स्कूल। लगभग तीन हजार बच्चे पॉश कॉलोनियों के बीचों-बीच। लेकिन इसमें इन सोसाइटियों का एक भी बच्चा पढ़ने नहीं जाता। इसके...
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शिक्षा भी, मजदूरी भी-- कृष्ण कुमार
कहते हैं, शब्दों की अपनी दुनिया होती है। कवि और कहानीकार शब्दों के जरिए हमें किसी और दुनिया में ले जाते हैं। फिर कानून रचने वाले क्यों पीछे रहें? नए बाल मजदूरी कानून का प्रयास कुछ ऐसा ही है। यह कानून कहता है कि छह से चौदह वर्ष के बच्चे स्कूल से घर लौट कर किसी ‘पारिवारिक उद्यम' में हाथ बंटाएं तो इसे मजदूरी नहीं माना जाएगा। इस सुघड़ तर्क...
More »खाड़ी देश में फंसे प्रवासियों की पीड़ा - रहीस सिंह
कभी-कभी दो परस्पर विरोधी स्थितियां जब सामने आती हैं, तो वे संशय पैदा करने के साथ काफी हद तक हमें असहज भी बना जाती हैं। इन स्थितियों को देख एक आम प्रश्न मन में उठता है कि यदि हम दुनिया की सबसे चमकदार अर्थव्यवस्था बन रहे हैं तो फिर हमारे युवाओं को काम के लिए दूसरे देशों में खाक छानने की जरूरत क्यों पड़ रही है? दूसरा सवाल यह कि...
More »उड़ती उदारता के पैर हैं नदारद-- अनिल रघुराज
आर्थिक विकास का मतलब अगर देशी-विदेशी कंपनियों के मुनाफे और शेयर बाजार का बढ़ना है, तो देश ने यकीनन पिछले 25 सालों में अच्छा विकास किया है. बीएसइ सेंसेक्स 29 जुलाई, 1991 को 1637.70 पर बंद हुआ था. अभी 29 जुलाई, 2016 को 28,051.86 पर बंद हुआ है. 25 साल में 1612.88 प्रतिशत वृद्धि या 12.03 प्रतिशत की सालाना चक्रवृद्धि दर. बाजार में इस दौरान विषमता भी घटी है. 1991...
More »बहुत दूर दिखती है मंजिल, सतत विकास सूचकांक में भारत 110वें स्थान पर
सतत विकास वैश्विक सामाजिक प्रगति रिपोर्ट में भारत के 98वें स्थान (133 देशों में) पर होने की निराशाजनक खबर के बाद अब चिंताजनक सूचना यह आयी है कि सतत विकास सूचकांक में हमारा देश 110वें (149 देशों में) पायदान पर खड़ा है. वर्ष 2030 तक गरीबी, भूख, अशिक्षा से मुक्ति के साथ बेहतर पर्यावरण का वैश्विक लक्ष्य पाने के हमारे प्रयासों पर यह एक गंभीर टिप्पणी है. इस रिपोर्ट की मुख्य...
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