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सामाजिक योजनाओं के जरिए सियासत साधने की कवायद में सरकार

धनंजय प्रताप सिंह/वैभव श्रीधर,भोपाल। बजट के जरिए सियासत साधने की कोशिश हर सरकार करती आई है और आने वाले बजट में ये कोशिश निश्चित तौर पर नजर आने वाली है। 1 मार्च को आने वाले प्रदेश के बजट में सड़क,बिजली,पानी और अधोसंरचना के बजाए सामाजिक योजनाओं के बहाने सोशल इंजीनिरिंग पर ज्यादा फोकस हो सकता है। वैसे इस फार्मूले की शुरुआत पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने की थी।लेकिन इसे सही...

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प्राइवेट अस्पतालों में प्रैक्टिस नहीं कर पाएंगे सरकारी डॉक्टर

रायपुर, निप्र। राज्य सरकार ने प्रदेशभर के सरकारी डॉक्टर्स की प्राइवेट प्रैक्टिस के नियम सख्त कर दिए हैं। नियमों के आधार पर कोई भी सरकारी डॉक्टर किसी निजी नर्सिंग होम, क्लीनिक, पैथोलॉजी लैब में सेवाएं नहीं दे सकता। वह अपने खुद की क्लीनिक में जरूर बैठ सकता है। डॉक्टर्स को इन नियमों के आधार पर अपने-अपने विभाग प्रमुख को 25 फरवरी तक शपथ-पत्र देना होगा, अगर नियमों का उल्लंघन पाया...

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लानत है ऐसे अस्पताल और ऐसी व्यवस्था पर-- अनुज कुमार सिन्हा

इन दाे खबराें आैर एक पत्र काे पढ़िए. पहली खबर : राजधानी रांची में एक पिता अपने बीमार बेटे के इलाज के लिए अस्पताल-अस्पताल घूमता रहा. पैसे नहीं थे. पिता गिड़गिड़ाता रहा. अस्पताल ने इलाज नहीं किया. बेटे की माैत हाे गयी. दूसरी खबर : राजधानी रांची के एक स्कूल के एक छात्र ने पेट्राेल छिड़क कर आग लगा कर जान देने का प्रयास किया, क्याेंकि पढ़ाई के दबाव से वह...

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जब औरतों के निशाने पर गांधीजी आए -- रामचंद्र गुहा

अहमदाबाद स्थित साबरमती आश्रम के अभिलेखागार में काम करते हुए गांधीजी को लिखा गया एक दिलचस्प पत्र मेरे हाथ लगा। यह पत्र 11 युवा महिलाओं ने लिखा था, जो कलकत्ता (अब कोलकाता) की थीं। उस चिट्ठी पर कोई तिथि नहीं लिखी थी, मगर ऐसा लग रहा था कि वह जनवरी, 1939 में लिखी गई थी। चिट्ठी ‘परमपूज्य महात्मा जी' को संबोधित थी, जिस पर सभी महिलाओं ने अपने अलग-अलग हस्ताक्षर...

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कभी अंधेरा, तो कभी टापू में बसर करते है खरगोन जिले में वड़ियावासी

खरगोन/भगवानपुरा। विवेक वर्द्धन श्रीवास्तव/इसहाक पठान। विकसित प्रदेश का ढिंढोरा पीटने वाली सरकारें शहर से कभी ग्रामीण क्षेत्र में झांककर नहीं देख सकी। खरगोन जिले के कई पिछड़े गांवों में से एक गांव है वड़िया। भगवानपुरा जनपद अंतर्गत गोपालपुरा पंचायत का हिस्सा वड़िया आज भी पिछड़ेपन की जिंदगी जीने को बेबस है। पिछले 70 सालों में कोई 700 आवेदन दिए। नतीजा सिफर रहा।   यहां न पर्याप्त बिजली है और ना सड़क। अस्पताल...

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