बीसवीं सदी के अंतिम दशक से भारत में जो विकासराग आरंभ हुआ, उसकी कुछ अस्फुट ध्वनियां राजीव गांधी के कार्यकाल में 1986 से सुनी जा सकती हैं. अंतिम दशक में जो विकास-दृष्टि, नीति बनी, वह 25 वर्ष में कहीं अधिक शक्तिशाली हो चुकी है. इस राग ने सभी रागों को सुला दिया है. आकर्षक, लुभावने मुहावरों और शब्दजाल का जो सिलसिला डेढ़ वर्ष से जारी है, उसने हमारी चिंतन-प्रक्रिया को...
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सूखे की मार से मवेशी भी बेजार-- पंकज चतुर्वेदी
भीषण सूखे से बेहाल बुंदेलखंड का एक जिला है छतरपुर। यहां सरकारी रिकॉर्ड में 10 लाख 32 हजार चौपाए दर्ज हैं, जिनमें से सात लाख से ज्यादा तो गाय-भैंस ही हैं। तीन लाख के लगभग बकरियां हैं। चूंकि बारिश न होने के कारण कहीं घास बची नहीं है, सो अनुमान है कि इन मवेशियों के लिए हर महीने 67 लाख टन भूसे की जरूरत है। इनके लिए पीने के पानी...
More »इक्कीसवीं सदी दलितों की है-- चंद्रभान प्रसाद
दलितों का महत्व अचानक ही बढ़ गया है, तमाम राजनीतिक पार्टियां डॉ. भीमराव अंबेडकर की परंपरा को अपनाने का दावा करते हुए दलितों के साथ अपनापा स्थापित करने में लग गई हैं। संघ परिवार जैसा दलितों का घनघोर विरोधी संगठन भी अंबेडकर के पक्ष में खड़ा होने लगा है। इन बुनियादी तथ्यों पर जरा नजर दौड़ाइए- 2014 के लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा ने 282 सीटें...
More »स्त्री मात्र देह नहीं- ऋतु सारस्वत
अपनी भावनाओं को शब्दों में पिरोते-पिराते मैंने कभी यह कल्पना भी नहीं की थी कि यह असीम संतुष्टि के साथ न जाने कितने रिश्तों को जोड़ देगी। ऐसे रिश्ते, जिनसे मानसिक और भावनात्मक मुलाकात तो पत्रों और फोन के माध्यम से महीने में एकाध बार हो जाती, लेकिन रूबरू कभी नहीं हुई। इन्हीं में से एक उज्जैन के ‘शरद' भाई साहब हैं। ‘भाई साहब' का संबोधन जहां उनके आत्मसम्मान को...
More »मनरेगा मजदूरों को भुगतान नहीं, छाया रहा मुद्दा
बिलासपुर(निप्र)। जिला पंचायत के पास मनरेगा के मजदूरों को देने के लिए फंड ही नहीं है। मजदूर पिछले कई दिनों से चक्कर काट रहे हैं। इस मुद्दे को लेकर सामान्य सभा की बैठक में चर्चा हुई। इसके अलावा अन्य कई मुद्दों पर एजेंडावार चर्चा और समीक्षा की गई। सोमवार दोपहर एक बजे से जिला पंचायत सभा कक्ष में अध्यक्ष दीपक साहू की अध्यक्षता में सामान्य सभा और सामान्य प्रशासन समिति की...
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