भोजन का अधिकार जीने के अधिकार से जुड़ा हुआ है और संविधान का अनुच्छेद 21 सभी नागरिकों को जीने का अधिकार प्रदान करता है। इस लिहाज से प्रस्तावित खाद्य सुरक्षा विधेयक स्वागतयोग्य है। पिछले दो दशकों में भारत में भूख एक बड़ी समस्या के रूप में उभरी है। 1991 में जब आर्थिक सुधार कार्यक्रम शुरू किए गए थे, तब प्रति व्यक्ति भोजन की खपत 178 किलोग्राम थी, जो 2003 में...
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मुद्दा: गरीब की नई परिभाषा
गरीबी: सभ्य समाज के इस सबसे बड़े अभिशाप को राष्ट्रपिता गांधी जी ने हिंसा का सबसे खराब रूप कहा। करेला उस पर नीम चढ़ा कि स्थिति यह कि गरीबों को 'गरीब' न मानना। हमारे हुक्मरानों ने गरीबों की नई परिभाषा गढ़ी है। अगर आप शहर में रहकर 32 रुपये और गांव में रहकर 26 रुपये प्रतिदिन से अधिक खर्च कर रहे हैं तो आप गरीब नहीं है। खुद को गरीब मानते...
More »नलकूप की स्थिति सबसे बदतर
मुजफ्फरपुर, हसं : विधानसभा की कृषि उद्योग विकास समिति की नजर में यहां नलकूप विभाग की स्थिति सबसे बदतर है। इसमें सुधार किए बिना कृषि व उद्योग के विकास की गति तेज नहीं हो सकती है। उक्त बातें समिति के सभापति गुड्डी देवी ने कही। राजकीय अतिथिशाला में आयोजित विभागों की समीक्षा बैठक के बाद वे पत्रकारों से बात कर रही थीं। उन्होंने बताया कि समीक्षा के क्रम में ये बातें...
More »बीड़ी पत्ते में धुआं-धुआं ज़िंदगी -- सारदा लहांगीर
“छो...छोको भूंजी लोक पतर तुड़ले लागसी भोक....” ( हम लोग गरीब भुंजिया आदिवासी, पत्ता तोड़ते हुए भूख लगती है ) नुआपाडा जिले के सीनापाली गांव में रहने वाली 55 वर्षीय पहनी मांझी को जंगल में तेदूपत्ता तोड़ते हुए जब भूख लगती है तो वो अपना ध्यान बंटाने के लिए यहीं उड़ीया लोकगीत गुनगुनाती हैं. तेंदूपत्ता अप्रैल और मई महीने की चिलचिलाती धूप में जब हम अपने वातानुकुलित कमरे में बैठे आराम फरमा...
More »पहाडी राज्य को आर्थिक विकास की सीढी चढायेगा आंवला
देहरादून : मस्तिष्क को शीतलता प्रदान करने वाला तथा शारीरिक शक्ति का स्रोत तमाम औषधीय गुणों से युक्त ‘‘आंवला’’ अब पर्वतीय राज्य उत्तराखंड में न केवल किसानों बल्कि इसके उत्पाद से जुडे व्यापारियों को भी आर्थिक विकास की सीढियां चढाने में कारगर साबित होगा. राज्य औषधि पादप बोर्ड के उपाध्यक्ष डा आदित्य कुमार ने बताया कि उत्तराखंड में वर्तमान में आंवले की खेती समुद्रतल से करीब 4500 फ़ुट की उंचाई तक की जा...
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