रांची: झारखंड में प्राथमिक शिक्षा का क्या हाल है, इसे प्रथम नाम की संस्था ने अपनी वार्षिक रिपोर्ट असर (एनुअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट 2010) के जरिये पेश किया है. रिपोर्ट में कुछ सकारात्मक बातें हैं, तो कुछ नकारात्मक भी हैं. शिक्षा का अधिकार कानून 2009 के तहत सभी 6-14 आयु वर्ग के बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा देनी है. राज्य के प्राथमिक स्कूलों में दाखिला तो बढ़ा है, साथ...
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पांचवी के बच्चों को नहीं आता दूसरी कक्षा का पाठ पढना
रायपुर.राज्य में शिक्षा की कई योजनाओं के लागू होने के बावजूद पढ़ाई में काफी कसर बाकी है। वर्ष 2010 में स्कूलों में एक फीसदी ड्रॉपआउट बढ़ा है। पहली के 20 फीसदी बच्चे अक्षर नहीं पहचाते और पांचवीं के 61.6 प्रतिशत बच्चे दूसरी कक्षा का पाठ भी नहीं पढ़ पाते। प्रदेश में सरकारी स्कूलों को मिलने वाले अनुदान का भी समुचित उपयोग नहीं हो रहा है। बच्चों व शिक्षकों...
More »ग्रामीणों क्षेत्नों में 17 हजार 239 शौचालय बनाए जाएंगे
मैनपुरी । उत्तर प्रदेश में मैनपुरी जिले में सम्पूर्ण स्वच्छता अभियान केअन्तर्गत ग्रामीण क्षेत्नों में 17239 शौचालयों के निर्माण के लिये सरकार द्वारा अनुदान दिया जायेगा । जिला पंचायत राज अधिकारी इजहार अहमद ने कल यहां बताया कि केन्द्र वित्त पोषित सम्पूर्ण स्वच्छता अभियान के तहत ग्रामीण क्षेत्नों में स्वच्छता सुविधायें उपलब्ध कराने के लिये सरकार बी.पी.एल. परिवारों को शौचालय निर्माण के लिये २२क्क् रुपये और ए.पी.एल. परिवारों को १५क्क् रुपये...
More »बी.पी.एल. शौचालय के नाम पर प्रधानों व सचिवों ने डकारे अठहत्तर लाख रूपये वर्ष २००७-०८ में
संडीला विकास खण्ड, जनपद-हरदोई में ९७ राजस्व गांव में बी.पी.एल. व ए.पी.एल. परिवारों के लिए व्यक्तिगत परिवारों को शौचालयों का निर्माण हुआ | यह निर्माण वर्ष २००७ व २००८ में सम्पूर्ण स्वच्छता अभियान के तहत यह कार्य ग्राम पंचायत के सचिव व प्रधानों ने करवाया | इस कार्य के लिए सरकार द्वारा पन्द्रह सौ रूपये का अनुदान बी.पी.एल. परिवारों को दिया जाना था और ए.पी.एल. परिवारों को भी पन्द्रह सौ रूपये का...
More »आत्मसम्मान का मजबूत होता जज्बा-- योगेन्द्र यादव
-सफ़ाई कर्मचारी आंदोलन द्वारा देश की राजधानी में आयोजित सम्मेलन अपने आप में एक ऐतिहासिक घड़ी थी. -सदियों से मैला उठाने वाला समाज अब टोकरी नहीं आवाज उठाना चाहता है, हाथ में झाड़ू नहीं किताब लेना चाहता है. -सरकार के झूठे वादों पर उम्मीद बांधने की बजाय अब इस समाज ने खुद मैलाप्रथा को खत्म करने की ठान ली है. आज भी कई लाख लोग अपने सर पर मैला उठाने को अभिशप्त हैं....
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