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मरती भाषाओं के दौर में- शेखर पाठक

जनसत्ता 13 सितंबर, 2013 : कभी रघुवीर सहाय ने कहा था, ‘न सही कविता मेरे हाथ की छटपटाहट सही’। यही बात भाषा के बारे में कही जा सकती है। सिर्फ मनुष्य अपनी छटपटाहट को भाषा यानी शब्द दे सका है। यह कहानी सत्तर हजार साल पहले शुरू होती है, हालांकि लिपियों का संसार करीब पांच हजार साल पहले बनना शुरू हुआ। आज भाषा मानव अस्तित्व की अनिवार्यता और पहचान हो...

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पिछड़े राज्य का दर्जा पाएंगे यूपी-बिहार

नई दिल्ली [नितिन प्रधान/जयप्रकाश रंजन]। पिछड़े राज्यों की नई परिभाषा गढ़ कर केंद्र सरकार ने एक नया राजनीतिक दांव चलने का मन बना लिया है। बहुत संभव है कि अगले कुछ हफ्तों के भीतर जब पिछड़े सूबों की नई परिभाषा तय की जाए तो उसमें बिहार केसाथ ही उत्तर प्रदेश तथा कुछ अन्य बड़े राज्य भी शामिल हो जाएं। पिछड़े राज्यों की नई परिभाषा तय करने के लिए गठित समिति ने शनिवार...

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गरीबी रेखा या भुखमरी की रेखा- अनिन्दो बनर्जी

देश में गरीबी रेखा के नीचे जीवन बसर करनेवालों के बारे में योजना आयोग द्वारा जारी आंकड़ों की कोई और उपयोगिता हो न हो, यह बदहाली के स्वीकार्य मापदंड नहीं हो सकते. जिस देश में करीब 46 फीसदी बच्चे कुपोषण से प्रभावित हों, जहां करीब 40 प्रतिशत परिवार पूर्णत: भूमिहीन या एक एकड़ से कम जमीन के मालिक हों, जहां 90 प्रतिशत से अधिक जनसंख्या का गुजारा असंगठित क्षेत्र में...

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नाबार्ड का पूंजी आधार चार गुना बढ़ेगा

नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। केंद्र सरकार ने ग्रामीण व कृषि क्षेत्र को ज्यादा कर्ज मुहैया कराने के अपने अभियान के तहत राष्ट्रीय कृषि व ग्रामीण विकास बैंक [नाबार्ड] के पूंजी आधार को चार गुणा बढ़ाने का फैसला किया है। नाबार्ड के मौजूदा पूंजी आधार 5000 करोड़ रुपये को बढ़ा कर 20 हजार करोड़ रुपये करने संबंधी प्रस्ताव को गुरुवार को केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में पास कर दिया गया। पूंजी आधार को बढ़ाने...

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"छत्तीसगढ़-मध्यप्रदेश का मॉडल बेहतर"- आरपी सिंह

झारखंड के राज्य ग्रामीण विकास संस्थान (सर्ड) के निदेशक राम प्रताप सिंह (आरपी सिंह) अपनी जिम्मेवारियों के प्रति संवेदनशील व समय के पाबंद हैं. गांव के विकास से जुड़े हर बिंदु पर वे मौलिक राय रखते हैं और इसे साझा भी करते हैं. तीन दशकों बाद जब झारखंड में पंचायत राज निकाय का गठन हुआ, तो उसे गति देने के लिए क्षमतावान अधिकारियों की जरूरत महसूस की गयी. ऐसे में...

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