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कृषि क़ानून: कृषि मंत्री के न होने पर किसान संगठनों ने सरकार के साथ बैठक का बहिष्कार किया

-द वायर,  हाल में बनाए गए तीन विवादित कृषि कानूनों पर बातचीत के लिए केंद्र सरकार ने जिन किसान संगठनों को निमंत्रण दिया था, वे नाराज होकर कृषि सचिव संजय अग्रवाल के साथ हो रही बैठक छोड़कर चले गए. द ट्रिब्यून की रिपोर्ट के अनुसार, किसानों के प्रतिनिधि जोगिंदर सिंह और जगमोहन सिंह ने कहा कि नई दिल्ली में कृषि सचिव के साथ बातचीत के लिए संगठनों के नेताओं को बुलाए जाने...

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सब पर शक करो, सबको रास्ते पर लाओ! क्या यही हमारे नये ‘राष्ट्रीय शक्की देश’ का सिद्धांत बन गया है

-द प्रिंट, क्या हमारा दिमाग खराब हो गया है कि हम अपने देश को ‘राष्ट्रीय शक्की देश’ कह रहे हैं? अब आप गूगल में सर्च करने लगेंगे तो यह जुमला कहीं नहीं मिलेगा. यह वैसा मामला नहीं है जैसा हम पाकिस्तान और चीन को ‘नेशनल सिक्यूरिटी स्टेट’ (राष्ट्रीय सुरक्षित राज्य) कहते हैं, जहां क्रमशः फौज और पार्टी न केवल देश की सीमाओं की निगरानी करती है बल्कि राज्यतंत्र और नागरिकों की...

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‘मोदी ने अर्थव्यवस्था को जर्जर किया’ - जीडीपी पर क्या बोले विदेशी अख़बार

-बीबीसी, केंद्रीय सांख्यिकी मंत्रालय ने सोमवार को जीडीपी के आंकड़े जारी कर दिए, जिसमें यह नकारात्मक रूप से 23.9 फ़ीसदी रही है. भारतीय अर्थव्यवस्था में इसे 1996 के बाद ऐतिहासिक गिरावट माना गया है और इसका प्रमुख कारण कोरोना वायरस और उसके कारण लगाए गए देशव्यापी लॉकडाउन को बताया जा रहा है. दुनिया में एक समय सबसे तेज़ी से उभरती अर्थव्यवस्था रहे भारत के इस नए जीडीपी आंकड़े से जुड़ी ख़बरों और लेख...

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ग्रामीण क्षेत्रों में विभिन्न योजनाओं और कार्यक्रमों को ठीक से लागू करने के लिए सरकारी कर्मचारी कहां हैं?

केंद्र सरकार द्वारा हर साल अपने वार्षिक बजट में ग्रामीण और कृषि क्षेत्रों के लिए भारी रकम आवंटित की जाती है. लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में पर्याप्त संख्या में अधिकारी नहीं होते हैं, तो क्या अधिकारियों की कमी के चलते सरकार की विभिन्न योजनाओं और कार्यक्रमों को ठीक से लागू किया जा सकता है? यदि हम इस मुद्दे के बारे में गहराई से सोचें तो हमें जवाब तो आसानी से मिल...

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असली सवाल तो शिक्षा की लागत, टैक्स और कीमत के हैं जिन पर उसकी गुणवत्ता टिकी है

-इंडिया टूडे, मरीजों ने महंगे और घटिया खाने पर अस्पताल प्रबंधन को घेरा तो चालाक निदेशक ने बहस शुरू करा दी. मांसाहार बनाम शाकाहार, काली दाल बनाम पीली दाल, चना बनाम गेहूं को लेकर मोर्चे बंध गए. इतिहास खोदा जाने लगा. इस बीच अस्पताल का निजाम नई कंपनी को मिल गया, जिसने अच्छे भोजन की महंगी दर तय कर दी. कुछ लोग उसे खरीद पाए, बचे लोग सड़े दाल-चावल पर लौट...

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