"यहां रोज़गार नहीं, एक दिन खेत की रखवाली न करो अन्ना जानवर पूरी फसल बर्बाद कर देते हैं, किसान क्या करे, बाहर कुछ तो काम मिल जाता है। यहां रहकर क्या करेंगे, "अपने घर के सामने खड़े शेखर सिंह अपने खाली होते गाँव के बारे में बताते हैं। उत्तर प्रदेश के महोबा जिले के कबरई विकास खंड के एज हजार से ज्यादा आबादी वाले दमौरा गाँव में 40 प्रतिशत से...
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यूरिया की किल्लत से गहराता संकट
समूचे हिंदुस्तान में इस वक्त यूरिया खाद की किल्लत है। गेहूं की बुआई से लेकर अभी तक अन्नदाताओं को उनकी जरूरत के मुताबिक यूरिया नहीं मिल सकी है। इस किल्लत के पीछे यूरिया की धड़ल्ले से हो रही कालाबाजारी है, जो चिंतित कर रही है। कहने को बाजारों में स्टॉक की कमी का रोना रोया जा रहा है, लेकिन ब्लैक में जितनी चाहो, उतनी यूरिया चंद घंटों में मुहैया हो...
More »जेएनयू विवाद: यूनिवर्सिटी में राजनीतिक हस्तक्षेप और स्वायत्तता का सनातन संकट
जेएनयू विवाद जो हॉस्टल मैन्युअल और फीस वृद्धि से शुरू हुआ था, अब छात्रों के संसद भवन मार्च और उन पर बल प्रयोग के बाद यह संसद भवन के बाहर से अन्दर तक पहुंच गया है. हॉस्टल में फ़ीस वृद्धि के बजरिए यह विवाद अब कई व्यवस्थागत विषयों को हमारे सामने खड़ा कर रहा है, तथा मानव संसाधन मंत्रालय की शैक्षिक नीति पर सवाल उठा रहा है. 1986 की शिक्षा नीति...
More »महिला किसानों का संगम रेडियो- बाबा मायाराम
तेलंगाना का छोटा गांव है माचनूर। वैसे तो यह गांव आम गांव की तरह है लेकिन सामुदायिक रेडियो ने इसे खास बना दिया है। इस गांव का नाम इतिहास में दर्ज हो गया है, देश का पहला सामुदायिक रेडियो इसी गांव में स्थापित हुआ। एक और इतिहास बना, वह है दलित महिला किसानों ने इसे चलाया। वे रिकार्डिंग से लेकर कार्यक्रम प्रसारित करने तक के सभी काम करती हैं। संगारेड्डी जिले...
More »बदल रही है परहिया समुदाय की जिंदगी
लातेहार जिला मुख्यालय से करीब 35 किलोमीटर औरंगा नदी के किनारे स्थित है उचुवाबाल. यह मनिका प्रखंड की रॉकी कलां पंचायत के लंका गांव का टोला है. इस टोले में परहिया समुदाय के 80 परिवार हैं. उनकी जीविका का एकमात्र जरिया हैं जंगल की उपज. इन वनोत्पादों को एकत्र करना और उन्हें बाजार में बेचना यही उनके आर्थिक जीवन का आधार है. इसके अलावा उच्च जाति के लोगाों के...
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